Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२२० छक्खंडागमे जीवठ्ठाणं
[ १, ७, ३८. एदं पि सुगमं ।
वेउब्वियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी सासणसम्मादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ॥ ३८ ॥
कुदो ? मिच्छादिट्ठीणमोदइएण, सासणसम्मादिट्ठीणं, पारिणामिएण, असंजदसम्मादिट्ठीणं ओवसमिय-खइय-खओवसमियभावेहि ओघमिच्छादिद्विआदीहि साधम्मुवलंभा ।
आहारकायजोगि-आहारमिस्सकायजोगीसु पमत्तसंजदा त्ति को भावो, खओवसमिओ भावो ॥ ३९ ॥
कुदो ? चारित्तावरणचदुसंजलण-सत्तणोकसायाणमुदए संते वि पमादाणुविद्धसंजमुवलंभा । कथमेत्थ खओवसमो ? पत्तोदयएक्कारसचारित्तमोहणीयपयडिदेसघादिफद्दयाणमुवसमसण्णा, हिरवसेसेण चारित्तघायणसत्तीए तत्थुवसमुवलंभा । तेसिं चेव सव्वघादिफद्दयाणं खयसण्णा, गट्ठोदयभावत्तादो । तेहि दोहिं मि उप्पण्णो संजमो खओव
यह सूत्र भी सुगम है।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि ये भाव ओघके समान हैं ॥ ३८ ॥
। क्योंकि, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टियोंके औदयिकभावसे, सासादनसम्यग्दृष्टियोंके पारिणामिकभावसे, तथा असंयतसम्यग्दृष्टियोंके औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक भावोंकी अपेक्षा ओघ मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानोंके भावोंके साथ समानता पाई जाती है।
आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें प्रमत्तसंयत यह कौनसा भाव है ? क्षायोपशमिक भाव है ॥ ३९॥
क्योंकि, यथाख्यातचारित्रके आवरण करनेवाले चारों संज्वलन और सात नोकषायोंके उदय होने पर भी प्रमादसंयुक्त संयम पाया जाता है।
शंका-यहां पर क्षायोपशमिकभाव कैसे कहा?
समाधान-आहारक और आहारकमिश्रकाययोगियोंमें क्षायोपशमिकभाव होनेका कारण यह है कि उदयको प्राप्त चार संज्वलन और सात नोकषाय, इन ग्यारह चारित्रमोहनीय प्रकृतियोंके देशघाती स्पर्धकोंकी उपशमसंज्ञा है, क्योंकि, सम्पूर्णरूपसे चारित्र घातनेकी शक्तिका वहां पर उपशम पाया जाता है। तथा, उन्हीं ग्यारह चारित्रमोहनीय प्रकृतियोंके सर्वघाती स्पर्धकोंकी क्षयसंज्ञा है, क्योंकि, वहां पर उनका उदयमें आना नष्ट हो चुका है। इस प्रकार क्षय और उपशम, इन दोनोंसे उत्पन्न होनेवाला
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