Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, १७. वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १७ ॥
कुदो ? दंसणमोहणीयक्खएणुप्पण्णखइयसम्मत्तादो खओवसमियवेदगसम्मत्तस्स सुट्ट सुलहत्तुवलंभा। को गुणगारो? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। कुदो ? ओघसोहम्मअसंजदसम्मादिट्ठिभागहारस्स आवलियाए असंखेज्जदिभागपमाणत्तादो ।
संजदासंजदाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी॥ १८॥
कुदो ? अणुब्धयसहिदखइयसम्मादिट्ठीणमइदुल्लभत्तादो । ण च तिरिक्खेसु खइयसम्मत्तेण सह संजमासंजमो लब्भदि, तत्थ दंसणमोहणीयक्खवणाभावा । तं पि कुदो णव्वदे ? 'णियमा मणुसगदीए' इदि सुत्तादो । जे वि पुव्वं बद्धतिरिक्खाउआ मणुसा तिरिक्खेसु खइयसम्मत्तेणुप्पज्जंति, तेसिं ण संजमासंजमो अस्थि, भोगभूमि मोत्तूण अण्णत्थुप्पत्तीए असंभवादो। तेण खइयसम्मादिट्ठिणो संजदासंजदा संखेज्जा चेय,
असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥१७॥
क्योंकि, दर्शनमोहनीय कर्मके क्षयसे उत्पन्न हुए क्षायिकसम्यक्त्वकी अपेक्षा क्षायोपशमिक वेदकसम्यक्त्वका पाना अति सुलभ है।
शंका-गुणकार क्या है ?
समाधान-आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है, क्योंकि, सामान्यसे सौधर्मस्वर्गके असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका भागहार आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है।
संयतासंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ १८ ॥
क्योंकि, अणुव्रतसहित क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंका होना अत्यन्त दुर्लभ है। तथा तिर्यंचोंमें क्षायिकसम्यक्त्वके साथ संयमासंयम पाया नहीं जाता है, क्योंकि, तिर्यंचोंमें दर्शनमोहनीयकर्मकी क्षपणाका अभाव है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-'दर्शनमोहनीयका क्षपण करनेवाले जीव नियमसे मनुष्यगतिमें होते हैं। इस सूत्रसे जाना जाता है।
तथा जिन्होंने पहले तिर्यंचायुका बंध कर लिया है ऐसे जो भी मनुष्य क्षायिक सम्यक्त्वके साथ तिर्यंचोंमें उत्पन्न होते हैं उनके संयमासंयम नहीं होता है, क्योंकि, भोगभूमिको छोड़कर उनकी अन्यत्र उत्पत्ति असंभव है। इसलिये क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीव संख्यात ही होते हैं, क्योंकि, संयमासंयमके साथ क्षायिकसम्यक्त्व
१ दसणमोहक्खवणापट्ठवगो कम्मभूमिजादो दु।णियमा मणुसगदीए णिट्ठवगो चावि सव्वत्थ ॥१॥ कसायपाहुडे, खवणाहियारे, १.
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