Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१,७,१५.] भावाणुगमे णेरइयभाव परूवणं
[२.९ तं जहा- तिण्णि वि करणाणि काऊण सम्मत्तं पडिवण्णजीवाणं ओवसमिओ भावो, दंसणमोहणीयस्स तत्थुदयाभावा । खविददंसणमोहणीयाणं सम्मादिट्ठीणं खइयो, पडिवक्खकम्मक्खएणुप्पण्णत्तादो । इदरेसिं सम्मादिट्ठीणं खओवसमिओ, पडिवक्खकम्मोदएण सह लद्धप्पसरूवत्तादो । मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वघादिफद्दयाणमुदयक्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण अणुदओवसमेण वा सम्मत्तदेसघादिफद्दयाणमुदएण सम्मादिट्ठी उप्पज्जदि ति तिस्से खओवसमियत्तं केई भणंति, तण्ण घडदे, विउचारदसणादो, अइप्पसंगादो वा।
ओदइएण भावेण पुणो असंजदो ॥ १४ ॥
संजमघादीणं कम्माणमुदएण असंजमो होदि, तदो असंजदो त्ति ओदइओ भावो। एदेण अंतदीवएण सुत्तेण अइक्कतसव्वगुणट्ठाणेसु ओदइयमसंजदत्तमस्थि त्ति भणिदं होदि।
एवं पढमाए पुढवीए णेरइयाणं ॥ १५॥
कुदो ? मिच्छादिट्टि त्ति ओदइओ, सासणसम्मादिहि त्ति पारिणामिओ, सम्मामिच्छादिट्टि त्ति खओवसमिओ, असंजदसम्मादिट्टि ति उपसमिओ खइओ खओव
जैसे- अधःकरण आदि तीनों ही करणोंको करके सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंके औपशमिक भाव होता है, क्योंकि, वहांपर दर्शनमोहनीयकर्मके उदयका अभाव है । दर्शनमोहनीयकर्मके क्षपण करनेवाले सम्यग्दृष्टि जीवोंके क्षायिकभाव होता है, क्योंकि, वह अपने प्रतिपक्षी कर्मके क्षयसे उत्पन्न होता है। अन्य सम्यग्दृष्टि जीवोंके क्षायोपशमिकभाव होता है, क्योंकि, प्रतिपक्षी कर्मके उदयके साथ उसके आत्मस्वरूपकी प्राप्ति होती है । मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनों प्रकृतियोंके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयक्षयसे, उन्हींके सदवस्थारूप उपशमसे, अथवा अनुदयरूप उपशमसे, तथा सम्यपत्वप्रकृतिके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे सम्यग्दृष्टि उत्पन्न होती है. इसलिए उसके भी क्षायोपशमिकता कितने ही आचार्य कहते हैं। किन्तु वह घटित नहीं होती है, क्योंकि, वैसा माननेपर व्यभिचार देखा जाता है, अथवा अतिप्रसंग दोष आता है।
किन्तु नारकी असंयतसम्यग्दृष्टिका असंयतत्व औदयिक भावसे है॥१४॥
चूंकि, असंयमभाव संयमको घात करनेवाले कौके उदयसे होता है, इसलिए 'असंयत' यह औदयिकभाव है। इस अन्तदीपक सूत्रसे अतिक्रान्त सर्व गुणस्थानोंमें असंयतपना औदयिक है, यह सूचित किया गया है।
इस प्रकार प्रथम पृथिवीमें नारकियोंके सर्व गुणस्थानोंसम्बन्धी भाव होते हैं ॥१५॥
क्योंकि, मिथ्यादृष्टि यह औदयिक भाव है, सासादनसम्यग्दृष्टि यह पारिणामिकभाव है, सम्यग्मिथ्यादृष्टि यह क्षायोपशमिकभाव है और असंयतसम्यग्दृष्टि यह
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