Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ६, ७६.] अंतराणुगमे मणुस्स-अंतरपरूवणं णवहि अट्ठहि अंतोमुहुत्तेहि एगसमयाहियअट्ठवस्सेहि य ऊणाओ अटेदालीसपुत्रकोडीओ उक्कस्संतरं होदि त्ति वत्तव्यं । पज्जत्त-मणुसिणीसु एवं चेव । णवरि पजत्तेसु चउवासं पुव्वकोडीओ, मणुसिणीसु अट्ठ पुत्रकोडीओ त्ति वत्तव्यं ।
चदुण्हं खवा अजोगिकेवलीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ७४॥
कुदो ? एदेसु गुणट्ठाणेसु अण्णगुणं णिबुदिं च गदेसु एदेसिमेगसमयमेत्तजहण्णंतरुवलंभा ।
उक्कस्सेण छम्मासं, वासपुधत्तं ॥ ७५ ॥
मणुस-मणुसपज्जत्ताणं छमासमंतरं होदि । मणुसिणीसु वासपुधत्तमंतरं होदि । जहासंखाए विणा कधमेदं णव्वदे ? गुरुवदेसादो ।
एगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ७६ ॥
कुदो ? भूओ आगमणाभावा। णिरंतरणिद्देसो किमé वुच्चदे ? णिग्गयमंतरं जम्हा होता है। किन्तु उनमें क्रमशः दश, नौ और आठ अन्तर्मुहूर्तीसे और एक समय अधिक आठ वर्षों से कम अड़तालीस पूर्वकोटियां उत्कृष्ट अन्तर होता है, ऐसा कहना चाहिए। मनुष्यपर्याप्तोंमें वा मनुष्यनियों में भी ऐसा ही अन्तर होता है। विशेषता यह है कि पर्याप्तोंमें चौवीस पूर्वकोटियों और मनुष्यनियोंमें आठ पूर्वकोटियोंके कालप्रमाण अन्तर कहना चाहिए।
चारों क्षपक और अयोगिकेवलियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय है ॥ ७४ ॥
क्योंकि, इन गुणस्थानोंके जीवोंसे चारों क्षपकोंके अन्य गुणस्थानों में तथा अयोगिकेवल के निर्वृतिको चले जानेपर एक समयमात्र जघन्य अन्तर पाया जाता है।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर, छह मास और वर्षपृथक्त्व होता है ॥ ७५ ॥
मनुष्य और मनुष्यपर्याप्तक क्षपक वा अयोगिकेवलियोंका उत्कृष्ट अन्तर छह मासप्रमाण है । मनुष्यनियों में वर्षपृथक्त्वप्रमाण अन्तर होता है।
शंका-सूत्रमें यथासंख्य पदके विना यह बात कैसे जानी जाती है ? समाधान-गुरुके उपदेशसे । चारों क्षपकोंका एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ ७६ ॥ क्योंकि,चारों क्षपक और अयोगिकेवलोके पुनः आगमनका अभाव है। शंका-सूत्रमें निरन्तर पदका निर्देश किस लिए है ? समाधान निकल गया है अन्तर जिस गुणस्थानसे, उस गुणस्थानको निरन्तर १ शेषाणां सामान्यवत् । स. सि. १, ८.
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