Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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अंतरानुगमे देव - अंतर परूवणं
[ ५९
सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्टीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पहुच जहणेण एगसमयं ॥ ८७ ॥
१, ६, ८९. ]
कुदो? दोण्हं पिसांतररासीणं णिरवसेसेण अण्णगुणं गाणं एगसमयं तरुवलंभा । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ८८ ॥
कुद ? एदासिंदोहं रासीणं सांतराणं णिरवसेसेण अण्णगुणं गदाणं उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ते अंतरं पडि विरोहाभावा ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदि भागो, अंत ॥ ८९ ॥
सास सम्मादिस्सि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो अंतरं, सम्मामिच्छादिट्ठिस्स अंतोमुहुत्तं । सेसं सुगमं, बहुसो परुविदत्तादो ।
सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना traint अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है ॥ ८७ ॥
क्योंकि, इन दोनों ही सान्तर राशियोंका निरवशेषरूपसे अन्य गुणस्थानको ये हुए जीवोंके एक समयप्रमाण अन्तर पाया जाता है ।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमका असंख्यातवां भाग है ॥ ८८ ॥
क्योंकि, इन दोनों सान्तर राशियोंके सामस्त्यरूपसे अन्य गुणस्थानको चले जानेपर उत्कर्ष से पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र कालमें अन्तरके प्रति कोई विरोध नहीं है।
उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर क्रमशः पल्योपमका असंख्यातवां भाग और अन्तर्मुहूर्त है ॥ ८९ ॥
सासादनसम्यग्दृष्टि देवका उत्कृष्ट अन्तर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। और सम्यग्मिथ्यादृष्टिका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । शेष सूत्रार्थ सुगम है, क्योंकि, पहले बहुतवार प्ररूपण किया जा चुका है ।
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१ सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टयोर्नानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । स. सि. १, ८. २ एक्जीवं प्रति जघन्येन पल्योपमासंख्येयभागोऽन्तर्मुहूर्तश्च । स. सि. १, ८.
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