Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ७, १.] भावाणुगमे णिदेसपरूवणं
[१८५ जणिदो भावो ओदइओ णाम । कम्मुवसमेण समुन्भूदो ओवसमिओ णाम । कम्माणं खवेण पयडीभूदजीवभावो खइओ णाम । कम्मोदए संते वि जं जीवगुणक्खंडमुवलंभदि सो खओवसमिओ भावो णाम । जो चउहि भावेहि पुव्वुत्तेहि वदिरित्तो जीवाजीवगओ सो पारिणामिओ णाम (५)।
एदेसु चदुसु भावेसु केण भावेण अहियारो ? णोआगमभावभावेण । तं कधं णव्वदे ? णामादिसेसमावेहि चोदसजीवसमासाणमणप्पभूदेहि इह पओजणाभावा । तिण्णि चेव इह णिक्खेवा होंतु, णाम-ट्ठवणाणं विसेसाभावादो ? ण, णामे णामवंतदव्यज्झारोवणियमाभावादो, णामस्स ह्रवणणियमाभावा, हवणाए इव आयराणुग्गहाणम
पांच प्रकारका है। उनमेंसे कर्मोदयजनित भावका नाम औदयिक है। कौके उपशमसे उत्पन्न हुए भावका नाम औपशमिक है। कर्मोंके क्षयसे प्रकट होनेवाला जीवका भाव क्षायिक है । कौके उदय होते हुए भी जो जीवगुणका खंड (अंश) उपलब्ध रहता है, वह क्षायोपशमिकभाव है। जो पूर्वोक्त चारों भावोंसे व्यतिरिक्त जीव और अजीवगत भाव है, वह पारिणामिक भाव है।
शंका–उक्त चार निक्षेपरूप भावों से यहां पर किस भावसे अधिकार या प्रयोजन है ?
समाधान-यहां नोआगमभावभावसे अधिकार है। शंका-यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान—चौदह जीवसमासोंके लिए अनात्मभूत नामादि शेष भावनिक्षेपोंसे यहां पर कोई प्रयोजन नहीं है, इसीसे जाना जाता है कि यहां नोआगमभाव भावनिक्षेपसे ही प्रयोजन है।
शंका-यहां पर तीन ही निक्षेप होना चाहिए, क्योंकि, नाम और स्थापनामें कोई विशेषता नहीं है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, नामनिक्षेपमें नामवंत द्रव्यके अध्यारोपका कोई नियम नहीं है इसलिए, तथा नामवाली वस्तुकी स्थापना होनी ही चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं है इसलिए, एवं स्थापनाके समान नामनिक्षेपमें आदर और अनुग्रहका भी
१ प्रतिषु ‘जीवगुणं खंड.' इति पाठः।
२ कम्मुवसमम्मि उवसमभावो खीणम्मि खइयभावो दु। उदयो जीवस्स गुणो खओवसमिओ हवे भावो ॥ कम्मुदयजकम्मिगुणो ओदयियो तत्थ होदि भावो दु। कारणणिरवेक्खभवो सभावियो होदि परिणामो॥ गो. क. ८१४-८१५.
३ प्रतिषु 'आयारा' इति पाठः।
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