Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ६, २८५.] अंतराणुगमे चक्खुदसणि-अंतरपरूवणं
[१३७ आउअंबंधिय (४) विस्संतो (५) देवेसु उपवण्णो। छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो (६) विस्संतो (७) विसुद्धो (८) उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो (९) सासणं गदो। मिच्छत्तं गंतूणंतरिय चक्खुदंसणिढिदिं परिभमिय अवसाणे सासणं गदो । लद्धमंतरं । अचक्खुदंसणिपाओग्गमावलियाए असंखेञ्जदिभागमच्छिदण मदो अचक्खुदंसणी जादो । एवं णवहि अंतोमुहुत्तेहि आवलियाए असंखेज्जदिभागेण य ऊणिया चक्खुदंसणिहिदी सासणुक्कस्संतरं ।
सम्मामिच्छादिद्विस्स उच्चदे- एक्को अचक्खुदंमणिहिदिमच्छिदो असण्णिपंचिंदिएसु उववण्णो। पंचहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो (१) विस्संतो ( २) विसुद्धो (३) भवणवासिय-वाण-तरदेवेसु आउअं बंधिय (४) विस्संतो (५) देवेसु उववण्णो । छहि पज्जतीहि पज्जत्तयदो (६) विस्संतो (७) विसुद्धो (८) उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो (९) सम्मामिच्छत्तं गदो (१० )। मिच्छत्तं गंतूगंतरिदो चक्खुदंसणिहिदि परिभमिय अवसाणे सम्मामिच्छत्तं गदो (११)। लद्धमंतरं । मिच्छत्तं गंतूण (१२) अचक्खुदसणीसु उववण्णो । एवं वारसअंतोमुहुत्तेहि ऊणिया चक्खुदंसणिट्ठिदी उक्करसंतरं ।
देवोंमें उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो (६) विश्राम ले (७) विशुद्ध हो (८) उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (९)। पश्चात् सासादनगुणस्थानको गया । पुनः मिथ्यात्वको जाकर अन्तरको प्राप्त हो चक्षुदर्शनीकी स्थितिप्रमाण परिभ्रमण करके अन्तमें सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुआ। इस प्रकार अन्तर लब्ध होगया । पुनः अचक्षुदर्शनीके बंध-प्रायोग्य आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण काल रह कर मरा और अचक्षुदर्शनी होगया । इस प्रकार नौ अन्तर्मुहूतौँसे और आवलीके असंख्यातवें भागसे कम चक्षुदर्शनीकी स्थिति चक्षुदर्शनी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवका उत्कृष्ट अन्तर है।
चक्षुदर्शनी सम्यग्मिथ्यादृष्टिका अन्तर कहते हैं- अचक्षुदर्शनकी स्थितिको प्राप्त हुआ एक जीव असंशी पंचेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ। पांचों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो (१) विश्राम ले (२) विशुद्ध हो (३) भवनवासी या वानव्यन्तर देवोंमें आयुको बांधकर(४) विश्राम ले (५) मरा और देवोंमें उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो (६) विश्राम ले (७) विशुद्ध हो (८) उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (९)। पश्चात् सम्यग्मिथ्यात्वको गया (१०) और मिथ्यात्वको प्राप्त होकर अन्तरको प्राप्त हुआ। चक्षुदर्शनीकी स्थितिप्रमाण परिभ्रमणकर अंन्तमें सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ (११)। इस प्रकार अन्तर लब्ध होगया। पुनः मिथ्यात्वको जाकर (१२) अचक्षुदर्शनियोंमें उत्पन्न हुआ। इस प्रकार बारह अन्तर्मुहूर्तोंसे कम चक्षुदर्शनीकी स्थिति चक्षुदर्शनी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवका उत्कृष्ट अन्तर है।
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