Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ६, २४१. म्भंतरिमाए उवसंतद्धाए अंतर-बाहिरखवगद्धाए अद्धमवणेदव्यं । अवसिद्धेहि अद्धछठेतोमुहुत्तेहि ऊणपुब्धकोडीए सादिरेयाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि उक्कस्संतरं होदि । सरिसपक्खे अंतरस्सब्भंतरसत्तअंतोमुहुत्तेसु अंतर-बाहिरणवतोमुहुत्तेमु सोहिदेसु अवसेसा वे अंतोमुहुत्ता । एदेहि ऊणाए पुचकोडीए सादिरेयाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि उक्कस्संतरं होदि । एवमोहिणाणिणो वि वत्तव्वं, विसेसाभावा ।
चदुण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २४१ ॥
सुगममेदं । उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ २४२ ॥ एवं पि सुगमं । एगजी पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २४३ ॥ एवं पि सुगमं ।
उक्कस्सेण छावट्ठि सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ २४४ ॥ कालमेंसे अन्तरसे बाहिरी क्षपककालका आधा काल निकालना चाहिए । अवशिष्ट बचे हुए साढ़े पांच अन्तर्मुहूर्तोंसे कम पूर्वकोटीसे साधिक तेतीस सागरोपम उत्कृष्ट अन्तर होता है । सदृश पक्षमें अन्तरके भीतरी सात अन्तर्मुहूर्तोको अन्तरके बाहरी नौ अन्तमुहूर्तोंमेंसे घटा देने पर अवशेष दो अन्तर्मुहूर्त रहते हैं। इनसे कम पूर्वकोटीसे साधिक तेस सागरोपमप्रमाण उत्कृष्ट अन्तर होता है। इसी प्रकारसे अवधिज्ञानीका भी अन्तर कहना चाहिए, क्योंकि, उसमें कोई विशेषता नहीं है।
तीनों ज्ञानवाले चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥ २४१ ॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है ॥२४२॥ यह सूत्र भी सुगम है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥२४३॥ यह सूत्र भी सुगम है।
उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर साधिक छयासठ सागरोपम है ॥ २४४ ॥
१ चतुर्णामुपशमकानां नानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । स. सि. १, ८. २ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः। स. सि. १, ८. ३ उत्कर्षेण षट्षष्टिसागरोपमाणि सातिरेकाणि । स. सि. १, ८.
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