Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ६, २०४.] अंतराणुगमे पुरिसवेदि-अंतरपरूवणं
[१०५ तं जहा- एक्को अट्ठावीससंतकम्मिओ अण्णवेदो पुरिसवेदमणुसेसु उववण्णो अट्ठवस्सिओ जादो । सम्मत्तं संजमं च जुगवं पडिवण्णो (१)। अणंताणुबंधिं विसंजोइय (२) दंसणमोहणीयमुवसामिय (३) अप्पमत्तो (४) पमत्तो (५) अप्पमत्तो (६.) अपुछो (७) अणियट्टी (८) मुहुमो (९) उवसंतकसाओ (१०) पडिणियत्तो मुहुमो (११) अणियट्टी (१२) अपुग्यो (१३) हेट्ठा परियट्टिय अंतरिदो । सागरोवमसदपुधत्तं परिभमिय कदकरणिज्जो होदूण संजमं पडिवज्जिय अपुवो जादो । लद्धमंतरं । उवरि पंचिंदियभंगो। एवमट्ठवस्सेहि एगूणतीसअंतोमुहुत्तेहि य ऊणा सगहिदी अंतरं होदि । अणियट्टिस्स वि एवं चेव वत्तव्यं । णवरि अहवस्सेहि सत्तावीसअंतोमुहुत्तेहि य ऊणं सागरोवमसदपुधत्तमंतर होदि ।
दोण्हं खवाणमंतर केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥२०४ ॥
सुगममेदं ।
जैसे- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई एक अन्यवेदी जीव पुरुषवेदी मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। आठ वर्षका होकर सम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त हुआ (१)। अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन कर (२) दर्शनमोहनीयका उपशमन कर (३) अप्रमत्तसंयत (४) प्रमत्तसंयत (५) अप्रमत्तसंयत (६) अपूर्वकरण (७) अनिवृत्तिकरण (८) सूक्ष्मसाम्पराय (९) उपशान्तकषाय (१०) पुनः लौटकर सूक्ष्मसाम्पराय (११) अनिवृत्तिकरण (१२) अपूर्वकरण (१३) होता हुआ नीचे गिरकर अन्तरको प्राप्त हुआ। सागरोपमशतपृथक्त्वप्रमाण परिभ्रमण कर कृतकृत्यवेदकसम्यक्त्वी होकर संयमको प्राप्त कर अपूर्वकरणसंयत हुआ। इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ। इसके ऊपर का कथन पंचेन्द्रियोंके समान है । इस प्रकार आठ वर्ष और उनतीस अन्तर्मुहूतौसे कम अपनी स्थितिप्रमाण पुरुषवेदी अपूर्वकरण उपशामकका उत्कृष्ट अन्तर होता है । अनिवृत्तिकरण उपशामकका भी इसी प्रकारसे अन्तर कहना चाहिए । विशेष बात यह है कि आठ वर्ष और सत्ताईस अन्तर्मुहूर्तोंसे कम सागरोपमशतपृथक्त्व इनका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
पुरुषवेदी अपूर्वकरणसंयत और अनिवृत्तिकरणसंयत, इन दोनों क्षपकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥२०४॥
यह सूत्र सुगम है।
१ द्वयोः क्षपकयो नाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ८. ...
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