Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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( ४६ )
क्रम नं.
विषय
३४ संयतासंयतसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक तीनों प्रकारके मनुष्योंका अन्तर ३५ चारों उपशामक मनुष्यत्रिकोंका अन्तर
३६ चारों क्षपक, अयोगिकेवली और सयोगिकेवली मनुष्यत्रिकोंका अन्तर ३७ लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका
अन्तर
४२ आनतकल्पसे लेकर नवग्रैवेयक- विमानवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यदृष्टियों का अन्तर
४३ उक्त कल्पों के सासादन सम्यदृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंका अन्तर
४४ नव अनुदिश और पांच अनुत्तरविमानवासी अन्तराभावका प्रतिपादन
देवोंमें
२ इन्द्रियमार्गणा
४५ एकेन्द्रिय जीवोंका अन्तर ४६ देव मिथ्यादृष्टिको एकेन्द्रि
षटूखंडागमकी प्रस्तावना
पृष्ठ नं.
क्रम नं.
( देवगति )
३८ मिध्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका अन्तर ३९ सासादनसम्यग्दृष्टि
और
सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंका अन्तर ५९-६२ ४० भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म-ईशानकल्पसे लेकर शतार - सहस्रारकल्प तकके मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका अन्तर ४१ उक्त देवोंमें सासादनसम्यदृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर
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५७.६४
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विषय
योंमें ले जाकर, असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन तक उनमें परिभ्रमण कराके पीछे देवोंमें उत्पन्न कराकर देवोंका अन्तर क्यों नहीं कहा ? इस शंकाका
समाधान
४७ एकेन्द्रिय जीवको त्रसकायिक जीवोंमें उत्पन्न कराकर अन्तर कहने से मार्गणाका विनाश क्यों नहीं होगा ? इस शंकाका समाधान ४८ बादर एकेन्द्रिय जीवोंका
अन्तर
४९ बादर एकेन्द्रियपर्याप्त और बादर एकेन्द्रियअपर्याप्तकोंका
अन्तर
५० सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंका अन्तर ५१ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और उन्हींके पर्याप्तक तथा लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंका अन्तर ५२ पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अन्तर ५३ असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक दोनों प्रकारके पंचेन्द्रिय जीवोंका अन्तर ५४ पंचेन्द्रियपर्याप्तकोंके सागरोपमशतपृथक्त्वप्रमाण अन्तर कहते समय ' देशोन ' पद क्यों नहीं कहा ? विवक्षित जीवको संक्षी, सम्मूच्छिम
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