Book Title: Shatkhandagama Pustak 05
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ६, १.]
अंतराणुगमे णिदेसपरूवणं रहिओ । तव्वदिरित्तदव्यतरं तिविहं सचित्ताचित्त-मिस्सभेएण । तत्थ सचित्तरं उसहसंभवाणं मज्झे ढिओ अजिओ । अचित्ततव्यदिरित्तदव्यंतरं णाम घणोअहि-तणुवादाणं मज्झे ढिओ घणाणिलो । मिस्संतरं जहा उजंत-सत्तुंजयाणं विच्चालट्टिदगामणगराई । खेत्त-कालंतराणि दव्यंतरे पविठ्ठाणि, छदव्यवदिरित्तखेत्त-कालाणमभावा । भावतरं दुविहं आगम-णोआगमभेएण । अंतरपाहुडजाणओ उपजुत्तो भावागमो वा आगमभावंतरं । णोआगमभातरं णाम ओदइयादी पंच भावा दोण्हं भावाणमंतरे द्विदा ।
एत्थ केण अंतरेण पयद ? णोआगमदो भावंतरेण । तत्थ वि अजीवभावतरं मोत्तूण जीवभावंतरे पयदं, अजीवभावंतरण इह पओजणाभावा । अंतरमुच्छेदो विरहो परिणामतरगमणं णस्थित्तगमणं अण्णभावव्यवहाणमिदि एयट्ठो। एदस्स अंतरस्स अणुगमो अंतराणुगमो। तेण अंतराणुगमेण दुविहो णिदेसो दवट्ठिय-पञ्जवट्ठियणयावलंबणेण । तिविहो णिद्देसो किण्ण' होज्ज ? ण, तइज्जस्स णयस्स अभावा । तं पि कधं णव्वदे ?
तद्व्यतिरिक्त द्रव्यान्तर सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तीन प्रकारका है। उनमेंसे वृषभ जिन और संभव जिनके मध्यमें स्थित अजित जिन सचित्त तद व्यतिरिक्त द्रव्यान्तरके उदाहरण हैं। घनोदधि और तनुवातके मध्यमें स्थित घनवात अचित्त तव्यतिरिक्त द्रव्यान्तर है । ऊर्जयन्त और शत्रुञ्जयके मध्य में स्थित ग्राम नगरादिक मिश्र तव्यतिरिक्त द्रव्यान्तर हैं । क्षेत्रान्तर और कालान्तर, ये दोनों ही द्रव्यान्तरमें प्रविष्ट हो जाते हैं , क्योंकि, छह द्रव्योंसे व्यतिरिक्त क्षेत्र और कालका अभाव है।
भावान्तर आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है । अन्तरशास्त्रके शायक और उपयुक्त पुरुषको आगमभावान्तर कहते हैं; अथवा भावरूप अन्तर आगमको आगमभावान्तर कहते हैं । औदयिक आदि पांच भावोंमेंसे किन्हीं दो भावोंके मध्यमें स्थित विवक्षित भावको नोआगम भावान्तर कहते हैं।
शंका-यहां पर किस प्रकारके अन्तरसे प्रयोजन है ?
समाधान-नोआगमभावान्तरसे प्रयोजन है। उसमें भी अजीवभावान्तरको छोड़कर जीवभावान्तर प्रकृत है, क्योंकि, यहां पर अजीवभावान्तरसे कोई प्रयोजन नहीं है।
अन्तर, उच्छेद, विरह, परिणामान्तरगमन, नास्तित्वगमन और अन्यभावव्यवधान, ये सब एकार्थवाची नाम हैं । इस प्रकारके अन्तरके अनुगमको अन्तरानुगम कहते हैं । उस अन्तरानुगमसे दो प्रकारका निर्देश है, क्योंकि, वह निर्देश द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयका अवलंबन करनेवाला है।
शंका-तीन प्रकारका निर्देश क्यों नहीं होता है ? समाधान नहीं, क्योंकि, तीसरे प्रकारका कोई नय ही नहीं है । शंका-यह भी कैसे जाना? १ प्रतिषु 'आजीओ' मप्रतौ'अजीओ' इति पाठः। २ प्रतिषु 'पुणोअहि ' इति पाठः।
३ प्रतिषु 'किण्ह ' इति पाठः।
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