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२२ अभक्ष्य पदार्थांका पृथक् निर्देश नहीं होनेपर भो उनका समावेश रत्नकरण्डकमें प्रतिपादित पाँच प्रकारके अभक्ष्योंमें हो जाता है ।
३८. भक्ष्य पदार्थोंकी काल मर्यादा
भक्षण करने के योग्य भी वस्तु एक निश्चित काल-सीमाके बाद अभक्ष्य हो जाती है, क्योंकि उनमें त्रस स्थावर जीव उत्पन्न हो जाते हैं । दिव्य ज्ञानियोंने अपनी सूक्ष्म दृष्टिसे इसका निर्णय कर शास्त्रोंमें इसका विशद विवेचन किया है । हिन्दी भाषामें रचे गये क्रियाकोषोंमें भक्ष्यमर्यादाका वर्णन पाया जाता है, पर संस्कृतमें रचित श्रावकाचारोंमें इसका वर्णन दृष्टिगोचर न होनेसे लोग उसे प्रमाण नहीं मानते हैं । उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि पं० दौलतरामजीने अपने क्रियाकोष के अन्तमें स्पष्ट शब्दोंमें कहा है कि आज लोग सुर-भाषा (संस्कृत) को विरले पुरुष ही समझते हैं, अतः मैंने इसे नर-भाषा (हिन्दी) में सुर-भाषावाले क्रियाकोषके अनुसार ही रचा है । (देखो श्रा० भा० ५ पृ० ३८९ छन्द १४-१५)
इसके अतिरिक्त श्रीकिशनसिंहजीने अपने क्रियाकोषमें 'हेमन्ते तीस दिणा' आदि जो तीन प्राचीन गाथाएँ (भा० ५ पृ० ११६, ११८ और ११९ में) उद्धृत की हैं, उनसे भी सिद्ध होता है कि पूर्वकालमें अक्ष्याभक्ष्य-मर्यादा-प्रदर्शक कोई ग्रन्थ अवश्य रहा है, जिसकी कि अनेक गाथाएँ दि० और श्वे० शास्त्रोंमें यत्र-तत्र पाई जाती है।' इसलिए भक्ष्याभक्ष्यकी मर्यादाको अप्रमाण माननेका कोई कारण प्रतीत नहीं होता है |
क्रियाकोषोंके वर्णनके अनुसार भक्ष्य -अभदय पदार्थोंकी काल-मर्यादा इस प्रकार है
नाम भक्ष्य पदार्थ
काल-मर्यादा
शीतकाल, ग्रीष्मकाल वर्षाकाल ७ दिन, ३ दिन
५ दिन,
१. गेहूं, चना आदिका आटा-चून
२. हल्दी घना, मिर्च आदि कुटा मसाला
३. बिना पानीके बेसन-लड्डू आदि
४. बूरा, बतासा, मिश्री
५. पिसा नमक
६. नमक मिला कच्चा भोजन
७. नमक मिला पक्का भोजन पूड़ी, पपड़िया, कचौरी आदि
८. दाल, भात, कड़ी आदि ९. वसन - गालित दूध, जल १०. भात - उबाला जल, दूध ११. भजिया, पूरी, सीरा आदि १२. अथाना लौंजी आदि
१. मेरे संग्रहमें ऐसी अनेक माषाएं संगृहीत है ।सम्पादक
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१ मास, १५ दिन, ७ दिन अन्तर्मुहूत्तं अन्तर्मुहूत्तं, अन्तर्मुहूतं
३ पहर, ८ पहर,
२ पहर, ८ पहर,
दो पहर आठ पहर
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२ पहर, २ पहर २ पहर अन्तर्मुहूर्त, अन्तर्मुहूर्त, अन्तर्मुहूर्त ८ पहर, ८ पहर, ८ पहर ४ पहर, ४ पहर, ४ पहर ८ पहर, ८ पहर, ८ पहर
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