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श्रावकाचार-संग्रह अत्रोत्तरम्खण्डितेऽप्यरणेः काष्ठे मूर्तो वह्निवसन्नपि । न दृष्टो दृश्यते किं वा जीवो मूत्तिविजितः ॥७९
पुनरप्यपरो ब्रूतेजीवन्नन्यतरश्चौरस्तोलितो मारितोऽथ सः । श्वासरोधेन किं तस्य तोलनेऽभून्न चोन्नता ॥८०
अत्रोत्तरम्दृतेः पूर्णस्य वातेन रिक्तस्यापि च तोलने । तुलासमात्तथाङ्गस्य सात्मनोऽनात्मनोऽपि च ॥८१
पुनः परो वदतिजलपिष्टादियोगेन मद्यवन्मदशक्तिवत् । अचेतनेभ्यश्चतन्यं भूतेभ्यस्तद्वदेव हि ॥८२
उत्तरमशक्तिों विद्यते येषां भिन्न-भिन्नस्थितिस्पृशाम् । समुदायेऽपि नो तेषां शक्ति रुषु शौर्यवत् ॥८३ प्रत्यक्षकप्रमाणस्य नास्ति कस्य न गोचरः । आत्मा ज्ञेयोऽनुमानाोर्वायुः कम्प्रैः पटैरिव ॥८४ अङ्करः सुन्दरे बीजे सूर्यकान्तौ च पावकः । सलिलं चन्द्रकान्तौ च युक्त्याऽऽत्माङ्गेऽपि साध्यते ॥८५
उत्तर-काठमें मूर्त अग्निके निवास करते हुए भी अरणिकाठके खण्ड-खण्ड कर देनेपर भी वह नहीं दिखाई देती है। फिर जीव तो मूत्तिसे रहित अमूर्त है, यह कैसे दिखाई दे सकता है ।॥७९॥
पुनः दुसरा कहता है कोई जीता हुआ चोर तोला जाय, इसके पश्चात् मारा गया उसका शरीर तोला जाय, तो श्वासके निरोधसे उसके तोलनेपर तुलाके उन्नतपना क्यों नहीं हुआ ॥८॥
इसका उत्तर-वायुसे परिपूर्ण दृति (चर्म-मशक) के तोलनेपर तथा वायुसे रिक्त कर देनेपर तुला जैसे समान रहती है, उसी प्रकार आत्मासे सहित और आत्मासे रहित शरोरके तोलनेपर भी तुलाको समान जानना चाहिए ।।८१॥
पुनः चार्वाक कहता है-जिस प्रकार जल-पिष्टी आदिके संयोगसे मदशक्तिवाली मदिरा उत्पन्न होती है, उसी प्रकार अचेतन पृथ्वी आदि भूतोंसे चैतन्य भी उत्पन्न हो जाता है । (अतः आत्मा या जीव नामक कोई स्वतन्त्र तत्त्व नहीं है) |८२||
उत्तर-भिन्न-भिन्न स्थितिका स्पर्श करनेवाले जिन पदार्थो के स्वयं शक्ति नहीं होती है, उनके समुदायमें भी वह शक्ति उत्पन्न नहीं हो सकती है। जैसे कि भीरु पुरुषों में शौर्य सम्भव नहीं है ।।८३||
यद्यपि एक प्रत्यक्ष प्रमाणके माननेवाले किसी भी पुरुषके आत्मा दृष्टिगोचर नहीं होता है, तथापि अनुमान आदि प्रमाणोंके द्वारा आत्मा ज्ञय है, अर्थात् उसका अस्तित्व जाना जाता है। जैसे कि वायु आँखोंसे नहीं दिखती है, फिर भी वह कम्पित होनेवाले वस्त्रोंसे जानी जाती है ।।८४॥ जिस प्रकार सुन्दर बीजमें अंकुर, सूर्यकान्तमणिमें अग्नि और चन्द्रकान्तमणिमें जलका अस्तित्व युक्तिसे सिद्ध है, उसी प्रकार युक्तिसे शरीरमें आत्माका अस्तित्व भी सिद्ध होता
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