Book Title: Sharavkachar Sangraha Part 4
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 586
________________ परिशिष्ट २४७ उल्लास श्लोक ५५. श्रुतज्ञानव्रत ६६. कवलचन्द्रायणव्रत ५६. सिंहनिःक्रीडितव्रत ६७. मेरुपंक्तिव्रत ५७. लघु चौंतीमीव्रत ६८. पल्यविधानव्रत ५८. बारासौ चौंतीसीव्रत ६९. रुक्मिणीव्रत ५९. पंचपरमेष्ठीगुणवत ७०. विमानपंक्तिवत ६०. पुष्पांजलिव्रत ७१. निर्जरपंचमीव्रत ६१. शिवकुमारवेलाव्रत ७२. कर्मनिर्जरणीव्रत ६२. तीर्थंकरवेलाव्रत ७३. कर्मचूरव्रत ६३. जिनपूजा पुरन्दरव्रत ७४. अनस्तमितव्रत ६४. कोकिलापंचमीव्रत ७५. निर्वाणकल्याणकवेलाव्रत ६५. द्रुतविलम्बितवत ७६. लघुकल्याणकव्रत १२. कुन्दकुन्द-श्रावकाचार के संशोधित पाठ आदर्श प्रति-पाठ संशोधित पाठ कलास्वते कलावते सोधे सोऽहं जीवन्ती अहं यच्छन्ति इच्छन्ति -मास्यैतां -माश्वतां कुर्वीय स्वजनस्य सुजनस्य भोगे अनुभूतश्रुतौ अनुभूतः श्रुतः दृष्टो दृष्टः समुद्भूतं समुद्भूतः पाढं षडेककर -वित्यपि -दित्यपि रसस्वरूपश्च' रसश्च रूपश्च मरुद्भयो ये मरुद्-व्योम शृक्वम्योः सक्विण्योः जीवन् अहं mr m » or १ कुर्वायं भागे पाद षट्करै : M4MMM नौ नो पथः पाथः * जिन पाठों का प्रयत्न करने पर भी संशोधन नहीं किया जा सका, अथवा भाव समझ में नहीं आया, वहाँ पर (?) यह प्रश्न-वाचक चिह्न लगा दिया गया है। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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