Book Title: Sharavkachar Sangraha Part 4
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 592
________________ परिशिष्ट २५३ उल्लास श्लोक पृष्ठ आदर्श प्रति-पाठ ११७ -मथादिः -पापातिदुष्टम् प्राप्य ११८ धर्माध्य ११८ उरस्यापि योत्रतं -नित्यत्वाद् ध्यानं संशोधित पाठ -मथादौ -पातादिदुःखम् -प्राप्तिधर्माद्देयं [च जीवनम्] नरकीर्ती योजितं -नित्यत्वाद्धेयं . कुन्दकुन्दश्रावकाचार का शुद्धिपत्रक पंक्ति ग्रन्थो दृष्टो बशुद्ध गन्थो इष्टो १७ ससिद्धि प्रथमेवाथ यत्नेः ऊर्ध्व आपद्वयापादने नातिआपत्ति के दूर करने में धर्म कार्य में हस्तक्षेप का विचार नहीं किया जाता है। हर किसी से २७ संसिद्धिः प्रथममेवाय यत्नः ऊवं ९२ अपत्योत्पादने -नीतिपुत्र पैदा करने में धर्म कार्य, ये ये कार्य दूसरों के हाथ से नहीं कराये जाते हैं। नीतिशास्त्र से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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