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श्रावकाचार संग्रह श्रोतृणां कविताकृतां प्रवचनव्याख्यातृकाणां पुनः शान्तिः शान्तिरघाग्निजीवनमुचः श्रीसज्जनस्यापि च ॥३५॥ यः कल्याणपरम्परां प्रकुरुते यं सेवते सत्तमा येन स्यात्सुखकोत्तिजीवितमुरु स्वस्त्यत्र यस्मै सदा । यस्मानास्त्यपरः सुहृत्तनुमतां यस्य प्रसादाच्छ्यिस्तं धर्माविकसमहं श्रयत भो यस्मिन् जनो वल्लभः ॥३६॥ कूपानिष्काश्य पातुं भवति हि सलिलं दुष्करं यस्य कस्य केनाप्यन्येन नूत्नोत्कुटनिहितमहो अन्यथा वा तदेव । तद्वत्पूर्वप्रणीतात्कठिनविवरणानातुमर्थोऽत्र शक्यः कैश्चिज्जातप्रबोधस्तवितरसुगमो ग्रन्थ एष व्यधायि ॥३७॥ धर्मसङ्ग्रहमिमं निशम्य यो धर्ममार्गमवगम्य चेतनः । धर्मसङ्ग्रहमलं करोत्यसो सिद्धिसोल्यमुपयाति शाश्वतम् ॥३८॥ धर्मतः सकलमङ्गलावली रोदसीपतिविभूतिमान् बलो। स्थावनन्तगुणभाक् च केवलो धर्मसङ्ग्रहमतः क्रियतात्सुघोः ॥३९॥
मिले, ग्रन्थके श्रोता जनोंको, कविता करनेवालोंको, तथा 'प्रवचनका व्याख्यान करनेवालोंको शान्ति प्राप्त हो, पाप शान्त हो, अग्नि-सन्ताप न' हो, और जल-कष्ट न हो । तथा सज्जन पुरुषोंको सर्व प्रकारको शान्ति प्राप्त हो ॥३५॥
__ जो धर्म कल्याणोंकी परम्परा करता है, जिसे सज्जनोत्तम पुरुष धारण करते हैं, जिसके द्वारा सुख, कीर्ति और जीवन विस्तृत होता है, जिसके लिए इस लोकमें सदा स्वस्ति-कामना की जाती है, जिससे बड़ा और कोई मित्र प्राणियोंका नहीं है, जिसके प्रसादसे सर्व प्रकार की लक्ष्मियाँ प्राप्त होतो है, जिसके प्राप्त होने पर मनुष्य सर्वप्रिय होता है, ऐसे धर्म हैं आदि में जिसके, ऐसे इस संग्रहका अर्थात् धर्म संग्रह श्रावकाचार ग्रन्थका हे भव्यजनो, तुम लोग आश्रय लो ॥३६॥
जिसे कूपसे निकालकर जल पीना कठिन है, ऐसे किसी पुरुषको यदि कोई अन्य पुरुष नवीन घड़ेमें भरा हुआ जल पीनेको देवे, अथवा अन्य प्रकारसे देवे, तो उसे बहुत आनन्द प्राप्त होता है। उसीके समान पूर्वाचार्योंसे प्रणीत कठिन शास्त्र-विवरणोंसे प्रबोधको प्राप्त कितने ही लोगोंको तो अर्थ जानना शक्य है। किन्तु जो प्रबोध प्राप्त पुरुष नहीं है, अर्थात् अल्पज्ञ या मन्दबुद्धिजन है उनके लिए यह सुगम ग्रन्थ मैंने बनाया है ॥३७॥
जो सचेतन पुरुष इस धर्म संग्रह शास्त्रको सुनकर और धर्मके मार्गको जानकर स्वयं धर्मको संग्रह करेगा, वह नित्य मुक्तिको सुखको प्राप्त होगा ॥३८॥
धर्मके प्रसादसे सर्वप्रकारकी मंगल-परम्परा प्राप्त होती है, वह भूलोक और देवलोककी विभूति बाला, बलवान् स्वामी होकर अन्तमें अनन्त गुणोंका धारक केवली होता है, इसलिए बुद्धिमान पुरुषोंको धर्मका संग्रह करना चाहिए ॥३९॥
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