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श्रावकाचार संग्रह सर्वेरहपूविकया. गुणैर्वृतं निरीक्ष्य दोषा निखिला यमत्यजन् । स्थाने हि तमूरिभिरवितेऽरिभिः स्थाने वसन्तीह जना न केचन॥१२॥ श्रुतज्ञतापि विनयेन धीमतां तया नयस्तेन च येन सम्पदा । तया च धर्मो गुणवनियुक्तया सुखङ्करं तेन ससस्तमीहितम् ॥१३॥
सत्योक्तित्वमजातशत्रुरखिलक्ष्मोद्धारसारं नयन्
रामः काम उदाररूपमखिलं शीलं च गङ्गाङ्गजः । कर्णश्चारुवदान्यतां चतुरतां भोजश्च यस्मायिति . स्वं स्वं पूर्वनृपा वितीर्य सुगुणं लोकेऽत्र जग्मुः परम् ॥१४॥ धनं धनाथिनो यस्मान्मानं मानाथिनो जनाः। प्राप्याऽऽसन सुखिनः सर्वे तदद्वयं तद-द्वयाथिनः॥१५॥ निशीनोः कौमुदस्येष्टो नाब्जानामन्यथा रवेः ।
यस्योदयस्तु सर्वेषां सर्वदेवेह वल्लभः ॥१६॥ स्त्री कुलीनाऽकुलीना श्रीः स्थिरा घी: कोतिरस्थिरा। यत्र चित्रं विरोधिन्योऽयमूर्तेर्नुः सह स्थितिम् ॥१७॥
तस्यानेकगुणस्य शस्यधिषणामसिंहस्य स
ख्यातः सूनुरभूत प्रतापवसतिः श्रीलक्ष्मणाल्या क्षितौ । होड़ से) सभी सद्-गुणों द्वारा जिसे वरण किया हुआ देखकर समस्त दोष मानों जिसे छोड़कर चले गये, सो यह बात योग्य ही है। अपने भारी शत्रुजनों से आश्रित स्थान पर इस संसार में कौन जन निवास करते हैं ? कोई भी नहीं ।। ११-१२ ॥
विनय से बुद्धिमानों को श्रुतज्ञता प्राप्त होती है, उससे सुनय-मार्ग प्राप्त होता है, उससे सम्पदा प्राप्त होती है, उससे धर्म प्राप्त होता है। धर्मसे गुणवानों में नियुक्ति होती है और उससे सभी सुख-कारक मनोरथ सिद्ध होते हैं ।। १३ ॥
जो सत्य वचन बोलने में अजातशत्रु (युधिष्ठिर) है, समस्त भूमि के सारको उद्धार करने में राम है, सुन्दर रूप में कामदेव है, शील-धारण करने में गाङ्गेय है, सुन्दर उदारता में कर्ण है
और चातुर्य में भोजराज है। ऐसे उस अमरसिंह को पूर्व-काल के उक्त राजा लोग अपने अपने विशिष्ट गुणों को देकरके ही मानों परलोक को चले गये हैं ॥ १४ ॥
जिस अमरसिंह से सभी धनार्थी पुरुष धन को पाकर, सन्मान के इच्छुक जन सन्मान को पाकर और धन-सन्मान इन दोनों के इच्छुक लोग इन दोनों को ही पाकर सुखी हो गये ॥ १५ ॥
निशानाथ चन्द्र का उदय कुमुदों को इष्ट है, कमलों को नहीं। रवि का उदय कमलों को इष्ट है, कुमुदों को नहीं। किन्तु जिस अमरसिंह का उदय इस लोक में सभी को सदा ही वल्लभ (प्रिय इष्ट) है ॥ १६ ॥
स्त्री कुलीन होती है और लक्ष्मी अकुलीन होती है, बुद्धि स्थिर होती है और कीत्ति अस्थिर होती है। फिर भी आश्चर्य है कि परस्पर विरोधिनी भी ये दोनों जिस अमूर्त पुरुष में एक साथ रह रही हैं ॥ १७॥
उस अनेक गुणशाली प्रशंसनीय बुद्धिवाले अमरसिंह के पृथ्वीविख्यात प्रतापशाली श्रीलक्ष्मण नाम का पुत्र हुआ। जिसे देखकर सुकविजन ऐसी तर्कणा करते हैं कि मानों मनुष्य
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