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यद्यपि उक्त पाँच प्रकारके अभक्ष्य पदार्थोंमें सभी भक्षण नहीं करनेके योग्य पदार्थ सम्मिलित हो जाते हैं, फिर भी जैन परम्परामें बाईस अभक्ष्योंका उल्लेख मिलता है। दिगम्बर परम्परा के हिन्दी क्रिया कोषोंमें बाईस अभक्ष्योंका वर्णन किया गया है। परन्तु प्रस्तुत संकलनमें संगृहीत किसी भी श्रावकाचारमें बाईस अभक्ष्योंका उल्लेख या उनके नामोंका निर्देश देखने में नहीं आया। हाँ, श्वेताम्बरीय ग्रन्थोंमें २२ अभक्ष्योंके नामवाली दो गाथाएं अवश्य उपलब्ध हैं जो कि इस प्रकार हैं
पंचुंबरि चउ विगई हिम विस करगे य सव्वमट्टो अ। राईभोयणगं चिय वहुबीम अणंत संधाणा ॥ १ ॥ घोलबड़ा वायंगण अमुणिअनामाई पुप्फ-फलाई।
तुच्छफलं चलिअ-रसं वज्जे वज्जाणि वावीसं ॥२॥ अर्थात्-बड़, पीपल आदि पांच उदुम्बर फल, मद्य, मांस, मधु और मक्खन ये चार महाविकृति, हिम (बर्फ), विष, करग (ओला), सर्व प्रकारकी मिट्टी, रात्रि भोजन, बहुबीजी फल, अनन्त काय. सन्धान (अथाना), घोलबड़ा, बैंगन, अजान पुष्प और फल, तुच्छ फल, और चलितरस ये बाईस प्रकारके अभक्ष्य पदार्थ त्याग करना चाहिए ॥ १-२॥
दि० परम्परामें पांच उदुम्बर और तीन मकार (मद्य, मांस, मधु) के त्यागरूप आठ मूल गुण श्रावकके कहे गये हैं। मक्खन भो मर्यादाके बाहिर होनेपर मांस या मधुके सदृश हो जाता है। इसी प्रकार घोलबड़ा आदि द्विदल पदार्थ, अथाना और चलितरस भी तीन मकारोंमें आ जाते हैं। तुच्छ फल अनन्तकायमें परिगणित होते हैं । विष, मिट्टी और अजान फल प्राण-घातक हैं । बगनको भी बहुबीजीमें जानना चाहिए । रात्रिभोजनका तो स्वतंत्र रूपसे निषेध किया गया है । इस प्रकार
१. देखो-किशनसिंहकृत क्रियाकोष भा० ५ पृ० ११६ । दौलतराम कृत क्रियाकोष भा० ५ पृ० १२४ । २. उक्त गाथाओंका हिन्दी पद्यानुवाद पढते ममय गुरु-मुखसे इस प्रकार सुना था
ओका', घोरबड़ा, निशि भोजन, बढुवीजा, बैंगन, सन्धान, बड़े, पल', ऊमरे, 'कठऊमर.''पाकर. फल जो होय अजान । कन्दमूल, माटी, विष, आमिप'", मधु", "माखन, अरु मदिरापान, फॐ अतितुच्छ, तपार, चलितरस२२, जिनमत ये बाईस अखान ।।। १. बोला-आकाशमे गिरनेवाला जमा पानी, २. पोरबड़ा-मूंग उड़द आदिके धो तेलमें पके दहीछांछमें फूले हुए बड़े, ३. रात्रि भोजन, ४. बहुत बोजवाले पपीता आदि, ५. बैंगन, ६. सन्धान (अथाना, अचार, मुरब्बा) ७. बड़, ८. पीपल, ९. ऊमर, १० कठमर और, ११. पाकर इन पांचों वृक्षोंके फल, १२. अजान फल, १३. कन्दमूल अनन्त स्थावर जीवोंके पिंड, १४. खेतकी गीली मिट्टी (असंस्य स्थावर जीवोंका पिंड) १५. विष (स्व-प्राणघातक) १६. मांस, १७. मधु, १८ मक्खन, १९. मदिरा-पान, २०. अतितुच्छफल (जिसमें बीज पूर्ण रूपसे विकसित नहीं हुए ऐसे छोटे फल, सप्रतिष्ठित वनस्पति, २१. तुषार (जमी हुई ओस बिन्दु, तथा धुनी हुई रुई के समान गिरनेवाला बर्फ) और, २२. चलित रस (जिन वस्तुओंका स्वाद दिगड़ जाय ऐसे घी, तेल, मिष्ठान्न पक्वान्न आदि) ये बाईस प्रकारके पदार्थ जैनमतमें अभक्ष्य कहे गये है।
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