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कुन्दकुन्द श्रावकाचार
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रविरोहिण्यमावास्याश्चेद् द्वौ यामौ तदा विषम् । चन्द्रेऽश्लेषाष्टमीयोगे चतुर्यामावधी विषः ॥२०५ भौमे यमश्च नवमी यामान् षट् सततं विषम् ।बुधे चतुर्थी राधायां विद्याद्यामाष्टकं विषम् ॥२०६ गुरौ च प्रतिपज्ज्येष्ठा षोडशप्रहरात् विषम् । कैश्चिदित्यपरात्तोऽयं तिथिवारतो मतः ॥२०७ शनिवार्द्राचतुर्दश्योः स्वदिनान्तं महाविषम् । कैश्चिदत्यिपरात्तोऽयं तिथिवार तो मतः ॥२०८
प्रकारान्तरमाह
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यमार्धमाद्यमन्तं च दुर्वारस्याह्नि निश्यपि । तत्तत्षष्ठशेषं स्यान्निशि तत्पञ्चमस्य तु ॥ २०९ सूर्यादी वर्तयित्वा षट् शुक्रसोमगुरोर्दिने । विवर्ते, पञ्चम आवृत्यं शुभं शत्रौ तु रात्रके ॥ २१० एकाक्षरेण वारनाम । वारैर्यथासङ्ख्यं नागप्रहरकाः । नागर्द्धयामकाश्चैते तेषु काले भवेच्छनौ । अपरात्तो भवेज्जीवे ज्ञेयं युक्त्याऽनयात्तयम् ॥२११
यदि वह विष नष्ट नहीं होता है, तब उससे आगे उस विषकी स्थिति भीतिप्रद ऐसा निश्चित जानना चाहिए || २०४॥
यदि रविवारके दिन रोहिणी नक्षत्र और अमावस्या तिथि हो, तब विष दो प्रहर तक रहता है। सोमवार के दिन आश्लेषानक्षत्र और अष्टमीके योगमें विष चार प्रहरको सीमामें रहता है || २०५ || मंगलवार के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और नवमी तिथिके योगमें लगातार छह प्रहर तक विष रहता है । बुधवारके दिन चतुर्थी और अनुराधा नक्षत्रमें विष आठ प्रहर तक जानना चाहिए || २०६ || गुरुवार के दिन प्रतिपदा और ज्येष्ठा नक्षत्रके योगमें विष सोलह पहर तक रहता है । कितने ही विद्वानोंने तिथि, वार और नक्षत्रसे भिन्न अन्यके अधीन यह योग माना है || २०७|| शनिवार के दिन आर्द्रा नक्षत्र और चतुर्दशीके योगमें महाविष अपने दिनके अन्त तक रहता है। कितने हो विद्वानोंने तिथि, वार और नक्षत्रसे भिन्न अन्यके अधीन यह योग माना है ॥२०८||
भावार्थ - कुछ आचार्योका मत है कि तिथि, वार, नक्षत्रके योगमें सर्प दंशका फल सामान्य होता है, क्योंकि मुहूर्त चिन्तामणिके नक्षत्र प्रकरणमें 'पित्रे समित्रे फणिदंशने मृतिः' अर्थात् यहाँपर केवल नक्षत्रमें ही सर्पदंशका फल कहा है । किन्तु कतिपय नक्षत्रों में सर्पदंश होनेपर तिथिवारका योग नहीं होनेपर भी मृत्यु हो हो जाती है ।
पहरके अर्ध आद्य और अन्तिम प्रहर तथा दुर्वार ( मंगल, शनि, रवि) के दिन उनका छठा अंश रहे तब, तथा रात्रिमें जब पंचम अंश शेष रहे तब तक महाविषका प्रभाव रहता है ॥ २०९ ॥ रविवार के दिन प्रारम्भसे पहिले शुक्र, रवि, सोम, शनि, गुरु, मंगल इस क्रमसे दिनका पर्याय होता हैं और रात्रिमें पंचम अर्थात् प्रथम प्रहर आनेपर सूर्य, वृहस्पति, चन्द्र, शुक्र, मंगल, शनि और बुधका पर्याय होता है अर्थात इस क्रमसे दिन और रात्रिमें सर्प-दष्ट पुरुषपर विषका
प्रभाव रहता है ।। २१०॥
यहाँ एकाक्षरसे वार-नाम लेना चाहिए। तथा वारोंसे यथासंख्य नागोंके पहर होते हैं । जिस समय जिस नागका अर्ध प्रहर होगा; उसी कालमें वह उसके लिए उद्यत होगा । ये उपर्युक्त नागों के अर्ध प्रहर है, उन पहरोंके कालमें शनिवार हो और यदि सर्प-दष्ट पुरुष अन्य किसीके द्वारा आत्त या गृहीत न हो, तो जीवमें जीवन जानना चाहिए। इसी युक्तिसे आत्त - अनात्तको भी जानना चाहिए || २११॥
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