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कुन्दकुन्द श्रावकाचार कामिस्पर्धावितीर्थः कान्ताकोपाद विवाहकत् ।
स्यक्तादोषः प्रियाशक्तः पश्चात्तापमुपैत्यलम् ॥४१० वैरि-वेश्याभुजङ्गेषु दुःखी सुखमनोरथी। ऋणो च स्थावरक्रेता मूर्खाणामाविमास्त्रयः ॥४११ सदैन्यार्थो सुदायत्त भार्यावित्त वनीपकः । प्रदायानुशयं पत्ते यस्तदन्यो हि कोऽधमः ॥४१२ अहंयुर्मतिमाहात्म्याद् गवितो मागधोक्तिभिः । लाभेच्छु यके लुब्धे ज्ञेया दुर्मतयस्त्रयः ॥४१३ बुष्टे मन्त्रिणि निर्भीकः कृतघ्नादुपकारधीः । दुर्नाथान्यायमाकाङ्क्षन्नेष्टसिद्धि लभेज्जनः ॥४१४ अपथ्यसेवको रोगो सद्वेषो हितवादिषु । नीरोगो ह्योषधप्राशी मुमूर्षुनात्र संशयः ॥४१५ शुल्कदोत्पथगामी च भुक्तिकाले प्रकोपवान् । असेवकः कुलमदास्त्रयोऽमी मन्दबुद्धयः ॥४१६ मित्रोद्वेगकरो नित्यं धूर्तेश्चविश्ववश्चितैः । गुणीषु मत्सरी यस्तु तस्य स्युविफलाः कलाः ॥४१७ चारुप्रियोऽन्यदारार्थो सिद्धेऽन्ने गमनादिकृत् । निःस्वोऽक्षीवरतो नित्यं निर्बुद्धीनां शिरोमणिः ॥४१८ धातुवादे धनप्लोषी रसिकश्च रसायने । विषभक्षो परीक्षार्थ त्रयोऽनर्थस्य भाजनम् ॥४१९
वाला पुरुष मनुष्योंकी हँसीका पात्र होता है ॥४०९|| कामीजनोंके साथ स्पर्धा करने में कुलटाव्यभिचारिणी स्त्रियोंको धन-वितरण करनेवाला, स्त्रीके कोपसे दूसरा विवाह करनेवाला, दोषोंको नहीं छोड़नेवाला और अपनी प्रियामें अत्यन्त आसक्त रहनेवाला पुरुष अन्तमें भारी पश्चातापको प्राप्त होता है ।।४१०॥
स्वयं दुखी रहने पर भी वेरी, वेश्या-भुजंग ( वेश्यागमी ) से सुखकी इच्छा रखनेवाला, ऋणी ( कर्जदार ) होकर स्थावर भूमि आदिका खरीदनेवाला ये तीनों मूर्बोके आदिम अर्थात् शिरोमणि हैं ॥४११।। दीनता-सहित धनार्थी हो करके भी स्त्रीके धन पर मौज उड़ानेवाला और दान दे करके पीछे पश्चात्ताप करनेवाला जो पुरुष है, उसके सिवाय अन्य कोन अधम पुरुष होगा ।।४१२॥ बुद्धिके माहात्म्यसे अहंकारी, मागधजनोंकी उक्तियोंसे गर्वित और लोभी स्वामीसे लाभ की इच्छा करनेवाला ये तीनों पुरुष दुर्बुद्धि जानना चाहिए ॥४१३॥ राजमंत्रोके दुष्ट होने पर भी निर्भीक रहनेवाला, कृतघ्नी पुरुषसे उपकारकी बुद्धि रखनेवाला और दुष्ट स्वामीसे न्यायकी आकांक्षा रखनेवाला मनुष्य कभी इष्ट-सिद्धिको प्राप्त नहीं होता है ॥४१४॥ अपथ्यका सेवन करनेवाला रोगी, हितकी बात कहनेवालों पर द्वेषभाव रखनेवाला और नीरोगी हो करके भी औषधियोंका खानेवाला मनुष्य मरनेका इच्छुक है, इसमें कोई संशय नहीं है ।।४१५।।
शुल्क ( राज्य-कर ) दे करके भी उन्मार्गसे गमन करनेवाला, भोजनके समय क्रोध करनेवाला और कुलके मदसे दूसरोंकी सेवा नहीं करनेवाला, ये तीनों पुरुष मन्द बुद्धिवाले जानना चाहिए ॥४१६॥ जो मित्रोंमें नित्य उद्वेग करनेवालाहै, सबको ठगनेवाले धूर्त पुरुषोंके साथ रहता है और जो गुणीजनों पर मत्सर भाव रखता है, उन पुरुषोंकी सभी कलाएँ निष्फल होती हैं ।।४१७|| सुन्दर स्त्रीवाला हो करके भी पराई स्त्रीकी अभिलाषा करनेवाला, अन्नके पक जाने पर भी अन्यत्र गमन करनेवाला और निर्धन हो करके भी नित्य हठ करनेवाला, ये सभी पुरुष निर्बुद्धिजनोंमें शिरोमणि हैं ॥४१८॥
धातुवाद ( पारद आदिसे सोना बनाने ) में धनको खर्च करनेवाला, रसायन बनानेका रसिक और परीक्षण करने के लिए विष-भक्षण करनेवाला ये तीनों ही अनर्थके पात्र होते हैं ॥४१९॥ दूसरेके अधीन रहनेवाला, अपनी गुप्त बातोंको कहनेवाला, नौकर-चाकरोंसे डरनेवाला, कुकर्मके
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