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कुन्दकुन्द श्रावकाचार बङ्गुष्ठस्याङ्गुलीनां च यद्यूनाधिकता भवेत् । धन_न्यैस्तदा होनो नरः स्यादायुषापि च ॥४४ मणिबन्धे यवश्रेण्यस्तिस्रश्चेत् स नृपो भवेत् । यदि ता पाणिपृष्ठेऽपि ततोऽधिकतरं फलम् ।।४५ द्वाभ्यां तु यवमालाभ्यां राजमन्त्री धनी बुधः । एकया यवपङ्क्त्या तु श्रेष्ठो बहुधनोचितः ॥४६
'सूक्ष्माः स्निग्धाश्च गम्भीरा रक्ता वा मधुपिङ्गलाः ।।
अव्यावृत्ता गतच्छेदाः कररेखाः शुभा नृणाम् ॥४७ त्यागाय शोणगम्भीराः सुखाय मधुपिङ्गलाः । सूक्ष्माः श्रिये भवेयुस्ते सौभाग्याय च मूलका: ४८
छिन्ना सपल्लवा रूक्षा विषमाः स्थानकच्युताः।
विवर्णाः स्फुटिताः कृष्णा नोलीस्तन्व्यश्च नोत्तमाः ॥४९ क्लेशं सपल्लवा रेखा क्लिन्ना जीवितसंशयम् । कदन्नं परुषाद द्रव्यविनाशं विषमापयेत् ॥५० मणिबन्धात्पितुलेखा करभाद्विभवायुषोः । लेखे द्वे यान्ति तिस्रोऽपि तर्जन्यङ्गष्ठकान्तरे ॥५१ एषा रेखा इमास्तिस्रः सम्पूर्णा दोषजिताः तेषां गोत्रधनायू षि सम्पूर्णान्यन्यथा न तु ॥५२ वह व्यक्ति लक्ष्मीसे हीन भी रहता है ।।४३।। यदि अंगूठेकी अंगुलियोंकी निम्न भागवाली पोरसे अधिकता हो, अर्थात् लम्बाई अधिक हो तो वह मनुष्य धन और धान्यसे हीन होता है और आयुसे भी हीन होता है ।॥४४॥ -
मणिबन्धमें यदि तीन यव-श्रेणी (जोके आकारवाली तीन श्रेणियाँ) हों तो वह व्यक्ति राजा होता है । और यदि वे ही जोके आकारवाली तीन श्रेणियो हाथके पृष्ठभागमें भी हों तो उसका उससे भी अधिक फल होता है, अर्थात् वह महाराज या माण्डलिक राजा होता है ॥४॥ मणिबन्धमें दो जोके आकारवाली श्रेणियोंसे मनुष्य राज-मंत्री, धनी और विद्वान होता है। एक यव-पंक्तिसे मनुष्य बहुत धनसे पूजित और श्रेष्ठ होता है ॥४६॥ मनुष्योंके हस्त-रेखाएं यदि सूक्ष्म, स्निग्ध, गम्भीर, रक्त वर्णवाली या मधुके समान पिंगल वर्णवाली, परस्पर मिली और गतच्छेद अर्थात् एकसे दूसरी कटी हुई न हों तो वे शुभ होती हैं ॥४७॥ रक्तस्वर्णवाली और गंभीर हस्त-रेखाएँ त्याग (दान) के लिए. मधुके समान पिंगल वर्णवालो रेखाएं सुखके लिए, सूक्ष्म रेखाएं लक्ष्मोके लिए और मूलभागसे (जिस रेखाका जो उद्गम स्थान है, वहाँसे) उत्पन्न हुई रेखाएँ सौभाग्यको सूचक होती है ॥४८॥ यदि रेखाएं कटी हुई हों, पल्लव सहित हों, रूक्ष हों, विषम हों, स्थानसे च्युत हों, विवर्ण हों, स्फुटित हों, काली या नोली हों, छोटी या पतोली हों तो वे उत्तम नहीं होती है ॥४९॥ पल्लव-सहित रेखाएं क्लेश करती हैं, क्लिन्न (छिन्न) रेखाएं संशय-युक्त जीवनको सूचित करती है, परुष रेखाएं खोटे अन्नका भोजन करना बतलाती है और विषम-रेखाएं द्रव्यके विनाशको सूचित करती हैं, ऐसा जाना चाहिए ॥५०॥
__ मणि बन्धसे पित-रेखा और करम अंगुलीके मूलसे वैभव एवं वायुकी रेखा प्रारम्भ होती है। ये दोनों तथा तीनों ही तर्जनी और अंगूठेके मध्य तक जाती हैं ॥५१॥ जिनके हाथमें यह .. पित-रेखा और वैभव एवं आयुकी रेखा ये तीनों ही रेखाएं पूर्ण तथा दोष-रहित हैं, उनके गोत्र (कुटुम्ब-परिवार) धन और आयु सम्पूर्ण (भरपूर) होते हैं। यदि उक्त रेखाबोंमें दोष होता है, १. हस्तसं.५० ८५ लो०१०। २. हस्तसं. पृ. ८५ स्लो. ११। ३. हस्वसं० ए० ८५ श्लोक १९ । ४. हस्तसं• पृ. श्लोक १३ ।
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