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कुन्दकुन्द श्रावकाचार
हृष्यन्मध्यवया प्रौढरतिक्रीडासु कौशलैः। वद्धात मधुरालापारवेण च रज्यते ॥१३६ षोडशाब्दा भवेद् बाला त्रिशता तयौवना । पञ्च-पञ्चाशता मध्या वृद्धा स्त्री तदनन्तरम् ॥१३७ पद्मिनी चित्रिणी चैव शङ्गिनी हस्तिनी तथा। तत्तदिष्ट विधानेनानुकला स्त्री विचक्षणैः ॥१३८ आसने चाथ शय्यायां जीवांशे विनियोजिता । जायन्ते नियतं वश्याः कामिभ्यो नात्र संशयः ॥१३९ न ज्वरवतो तप्यत्यश्लथाङ्गी पथि विक्लवा। मासैकप्रसवा नारी काम्या षण्मासर्गाभणी ॥१४० वृक्षाद् वृक्षान्तरं गच्छन् प्राज्ञैश्चिन्त्योऽत्र वानरः । मनो यत्र स्मरस्तत्र ज्ञानं वश्यङ्करं ह्यदा ॥१४१ कम्पननर्तनहास्याश्रुमोक्षप्रोच्चैः स्वरादिकम् । प्रमदा सुरतोन्मत्ता कुरुते तत्र निःस्पृहा ॥१४२ रतान्ते श्रयतेऽकस्माद् घण्टानादस्तु नुच्छिदः । येन तस्यैव पञ्चत्वं पञ्चमासान्तरे भवेत् ॥१४३ पक्षान्निदाघे हेमन्ते नित्यमन्यर्तुषु व्यहात् । स्त्रियं कामयमानस्य जायते न बलक्षयः ।।१४४ भक्षणसे प्रसन्न होती है, युवावस्थावालो स्त्री वस्त्र और आभूषण आदिसे प्रमुदित होती है । मध्य अवस्था वाली स्त्री प्रौढ़ रति-क्रियाओंमें कौशलोंसे आनन्दित होती है और वृद्धा स्त्री मधुर वचनालापोंसे तथा गौरव-प्रदान करनेसे अनुरंजित होती है ।।१३५-१३६।। सोलह वर्ष तकको स्त्री बाला कहलाती है, तीस वर्ष तककी स्त्री अद्भुत यौवन वाली युवती कहलाती है, पचवन वर्ष तककी आयुवाली स्त्री मध्य-अवस्थावाली कहलाती है और उसके अनन्तर आयुवाली स्त्री वृद्धा कही जाती है ॥१३७।।
स्त्रियाँ चार प्रकारको होती हैं—पद्मिनी, चित्रिणी, शंखिनी और हस्तिनी। विचक्षण पुरुष उक्त प्रकारकी स्त्रीकी उस उसके योग्य इष्ट विधानसे अपने में अनुरक्त करते हैं। विशेषार्थपद्मिनी स्त्रीके केश सघन, स्तन गोल एवं दन्त छोटे और शोभायुक्त होते हैं। चित्रिणी स्त्रोके केश कुटिल वक्र, स्तन सम, और दन्त भी सम होते हैं। शंखिनी स्त्रोके केश दीर्घ, स्तन दीर्घ (लम्बे) और दन्त भी दीर्घ होते हैं। हस्तिनी स्त्रीके केश अल्प (विरल) स्तन विकट और दन्त उन्नत होते हैं। पद्मिनीके शब्द हंसके समान, हस्तिनीके हाथीके समान, शंखिनीके रूक्ष और चित्रिणी के काक-समान होते हैं। पद्मिनीकी शारीरिक गन्ध कमलके समान हस्तिनीकी हाथीके समान, शंखिनीकी क्षार-समान और चित्रिणी की गन्ध शून्य होती है ॥१३८॥
आसन और शय्यापर काम-कुतूहलोंके द्वारा मैथुन सेवनमें विनियोजित स्त्रियाँ नियत रूपसे अपने अधीन होती हैं, इनमें संशय नहीं है ।।१३९।। ज्वरवाली स्त्री, शिथिल अंगवाली, मार्गमें थकानसे विकल चित्तवाली, एक मासकी प्रसूतिवाली और छह मासके गर्मवाली स्त्री कामना को जाने पर भी तृप्त नहीं होती हैं, अतएव उनके साथ काम-सेवन नहीं करना चाहिए ॥१४॥
जैसे एक वृक्षसे दूसरे वृक्षपर जाता हुआ वानर चंचल होता है उसी प्रकार कामासक्त मन भी अति चंचल होता है। उसे वश में करनेवाला एकमात्र ज्ञान ही है ॥१४१।। काम-सेवन्में निःस्पृह भी प्रमदा स्त्री शरीर-कम्पन, नर्तन, हास्य, अश्रु-पात और उच्च स्वरादिकसे सुरत-सेवन के लिए उन्मत्त कर दी जाती हैं ॥१४२।। यदि स्त्री-रमणके अन्तमें अकस्माद् घण्टाका शब्द सनाई देता है तो उससे उसी व्यक्तिका मरण पाँच मासके भीतर होगा. ऐसा जानना चाहिए ।।१४३।।
ग्रीष्म ऋतुमें एक पक्षसे, हेमन्त ऋतुमें नित्य, तथा अन्य ऋतुओंमें तीन दिनसे स्त्रीको कामना करनेवाले पुरुषका बल क्षीण नहीं होता है ॥१४४॥
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