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चुग लेता है । मुझे यह सुनते ही 'आमगोरससंम्पृक्तं द्विदल' वाक्य याद आया और जाना कि शास्त्रका यह वाक्य यथार्थ है और द्विदलान्न अभक्ष्य है । मैंने इस घटनाको तभी एक लेख -द्वारा जैन मित्रमें प्रकाशित भी किया था ।
'आमगोरससम्पृक्तं' का अर्थ पं० आशाधरजीने कच्चे दूध, दही छांछसे मिश्रित द्विदलअन्न ही किया है और अपने इसी अर्थके पोषणमें ज्ञानदीपिका पंजिकामें योगशास्त्रका निम्न श्लोक भी उद्धृत किया है
आमगोरस सम्पृक्तद्विदलादिषु जन्तवः ।
दृष्टाः केवलिभिः सूक्ष्मास्तस्मात्तानि विवर्जयेत् । - (योगशास्त्र ३१७१)
इस श्लोक में तो केवलि-दृष्ट सूक्ष्म जीवोंकी उत्पत्ति बतलाई गई है, परन्तु ऊपर दी गई घटना तो ऐसे स्थूल त्रसजीवोंकी उत्पत्ति प्रकट करती है, जिसे कि कबूतर अपनी चोंचसे चुग सकता है।
'आमगोरससम्पृक्त द्विदल अन्न अभक्ष्य है, इसके आधार पर लोग उष्ण करके जमाये गये दूध, दही और उसके छांछसे सम्पृक्त द्विदलान्नको अभक्ष्य नहीं मानते हैं । कुछ यह भी कहते हैं कि उष्ण दुधसे जमे दही और बने छांछको भी उष्ण करके द्विदल अन्नको मिलाना चाहिए । कितने ही प्रान्तों में कच्चा दूध जमाया जाता है । इसलिए सभी बातोंका विचार विवेकी जनोंको करना चाहिए ।
किन्तु एक ऐसा भी प्रमाण उपलब्ध हुआ है, जिसके अनुसार पक्व भी गोरसमें मूंग, चना आदि द्विदलवाली वस्तुओंके मिलानेपर भी सम्मूच्छिम त्रसजीव उत्पन्न हो जाते हैं और वैसे द्विदलान्नके खाने पर उनका विनाश हो जाता है
यथा - आमेन पक्वेन च गोरसेन मुद्गादियुक्तं द्विदलं तु काष्ठम् । जिह्वादुति स्यात् सजीवराशिः सम्मूच्छिमा नश्यति नात्र चित्रम् ॥ (विवरणाचार, अध्याय ६) अतः कच्चे या पकाये हुए गोरसके साथ सभी प्रकारके द्विदल अन्नोंके भक्षणका त्याग ही श्रेयस्कर है ।
४०. सूतक पातक विचार
प्रस्तुत श्रावकाचार - संग्रहके प्रथम भाग में संकलित किसी भी श्रावकाचार में सूतक - पातकका कोई विधान नहीं है । दूसरे भाग में संकलित सागार धर्मामृतमें भी इसका कोई उल्लेख नहीं है । पं० मेधावी धर्म संग्रह श्रावकाचार के छठे अधिकारमें सर्वप्रथम सूतक-पातकका विचार दृष्टि गोचर होता है । वहाँ बताया गया है
मरण तथा प्रसूतिमें दश दिनतक सूतक पालना चाहिए। इसके बाद ग्यारहवें दिन घर, वस्त्र तथा शरीरादि शुद्ध करके और मिट्टीके पुराने बर्तनोंको बाहिर करके, तथा शुद्ध भोजनादि सामग्री बनाकर सर्वप्रथम जिन भगवान् की पूजा करनी चाहिए। शास्त्रोंकी तथा मुनियोंके चरणोंकी विधि पूर्वक पूजा करके तथा व्रतका उद्यापन करके शुद्ध होकर फिर गृह कार्य में लगना
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