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अथ द्वितीयोल्लासः द्वितीया वजिता स्नाने वशमो चाष्टमी तथा । त्रयोदशी चतुर्दशी षष्ठी पञ्चदशी कुहूः ॥१ बादित्यादिषु वारेषु तापं कान्ति मृति धनम् । दारिद्धं दुर्भगत्वं च कामाप्तिः स्तानतः क्रमात् ॥२ नाग्नातः प्रोषितो यातः सचेलो भुक्तभुक्षितः । नव स्नायादनुवज्य बन्धन कृत्वा च मङ्गलम् ॥३ न पर्वे न च तीर्थेषु सङ्क्रान्तौ न च वैधृतो।न विष्टयां न व्यतीपाते तैलाम्यङ्गो न सम्मतः ॥४ स्नानं शुद्धाम्बुना यत्र न कदापि च विद्यते । तिथिवारादिकं यच्च तेलाम्यने तदुच्यते ॥५ गर्भाशयाद ऋतुमती गत्वा स्नायाद्दिने परे। अनुतुस्त्रीगमे शौचं मूत्रोत्सर्गवदाचरेत् ॥६
रात्रौ स्नानं न शास्त्रीय केचिदिच्छन्ति पर्वणि।
तीर्थ स्नात्वाऽन्यतीर्थानां कुर्यान्निन्दास्तुतो न च ॥७ अज्ञाते दुष्प्रवेशे च मलिनैदूषितेऽथवा । तरूच्छन्ने सशैवाले न स्नानं युज्यते जले ॥८ स्नानं कृत्वा जलैः शीतः भोक्तुं गन्तुं न युज्यते । जलरुष्णस्तथा शोते तैलाम्यङ्गश्च सर्वदा ।।९ स्नातस्य विकृता छाया दन्तघर्षः परस्परम् । देहे च शवगन्धश्चेन्मृत्युस्तद्दिवसत्रये ॥१० स्नानमात्रस्य यच्छोषो वक्षस्यङ्घ्रिद्वयेऽपि च । षष्ठे दिने तथा नेयं पञ्चत्वं नात्र संशयः ॥११
स्नान करनेमें द्वितीया, षष्ठी, अष्टमी, दशमी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पंचदशी पूर्णिमा और अमावस्या तिथि वजित कही गई है ॥१॥ आदित्य (रवि) आदि वारोंमें स्नान करनेवाला मनुष्य क्रमसे सन्ताप, कान्ति, मरण-तुल्य कष्ट, धन, दरिद्रता, दुर्भाग्य और वांछित वस्तुको प्राप्त करता है | नग्न, पीड़ित, प्रवासमें रहते हए, सचेल (वस्त्र पहिने हए) भोजन करके, अति भूखा, बन्धुजनोंके पीछे गमन करनेवाला और मंगल कार्य करनेके पश्चात् स्नान नहीं करे ॥३॥ पर्वके दिन, तीर्थ स्थानोंपर, सक्रान्तिके समय और वैधृति योगमें तेल-मर्दन नहीं करे। इसी प्रकार विष्टि (भद्रा) में और व्यतीपातयोगमें तैल-मर्दन आचार्य-सम्मत नहीं है ॥४॥
पर जिस दिन शद्ध जलस स्नान करना कदापि सम्भव न हो वहाँपर वे तिथि वार आदिक तैल-मर्दन करनेके योग्य कहे गये हैं ।।५।। गर्भधारण करनेके अभिप्रायसे ऋतुधर्मवाली स्त्रीके साथ समागम करके अगले दिन स्नान करे । जो स्त्री ऋतुधर्मसे युक्त नहीं है उसके साथ समागम करनेपर मत्र-उत्सर्गके समान शौच आचरण करे ।।६।। रात्रिमें स्नान करना शास्त्र-सम्मत नहीं है। किन्तु कितने ही आचार्य पर्वके दिन रात्रिमें स्नानको स्वीकार करते हैं। किसी तीर्थस्थानपर स्नान करके अन्य तीर्थस्थानोंकी निन्दा या प्रशंसा नहीं करनी चाहिए ॥७॥ अज्ञात जलस्थानमें, दष्प्रवेशवाले जलमें, मलिन वस्तुओंसे दूषित जलमें, वृक्षोंसे ढंके हुए जलमें और शैवाल (शिवार) से यक जलमें स्नान न करे ॥८॥ शीतल जलसे स्नान करके भोजन करना, या गमन करना योग्य नहीं है। शीतकालमें सदा तेल-मर्दन करके उष्णजलसे स्नान करना चाहिए ।।९।।
स्नान करनेके बाद यदि शरीरको छाया विकृत दिखाई देवे, परस्पर दांतोंका संघर्ष हो, और यदि शरीरमें शव (मृतदेह) के समान गन्ध आवे तो तीन दिनमें उसकी मृत्यु होगी ॥१०॥ स्नान करते हो यदि वक्षःस्थलपर और दोनों पैरोंपर सूखापन दिखे तो छठे दिन उसका मरण
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