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(१७)
संघायमाला.
सांजलिये मन धरी रंग || सुअखंध दोइ इहां सारा, सुपि सफल करो अव तारा हो लाल || १ || प्यारी जिनवर वाली, लागे मीठी साकरवाणी हो लाल || व्या ॥ एांकणी | पहिलामां कथा नगलीश, दसवग्ग बीजे सुजगीस ॥ कोडी कथा तिहां सारी, बग अंगनी जानं बलिहारि हो लाल ॥ प्या ॥ २ ॥ उत्सव आणंद धारो, बीजा ध्याने जन तारो ॥ रोमां चित हुइ चित्त्रधारो, समकित पर्याय वधारो हो लाल || प्या० ॥ ३ ॥ साहाज्य करे श्रुत सुणतां, ते सुख पामे मनगमतां ॥ जे विधन करे हुए थाको, ते तो मालस नही पण पाको हो लाल || प्या० ॥ ४ ॥ वाचक जस कहे सुखो लोग, श्रुत टाले विघननो सोग || कहियें श्रुतनक्ति नवि त्यजि यें, गुरुचरण कमल नित नजियें हो लाल || प्याण् ॥ ६ ॥ इति ॥ ६ ॥
॥ श्रथ सातमा अंग उपासकदशांगनी सद्याय लिख्यते ॥
॥ चोपाइनी देशी ॥ सातमुं अंग उपासकदशा, ते सांजलवा मन नलस्यां ॥ टोलें मलि मनोहरनाव, पाम्यो धर्मकथा प्रस्ताव ॥ १ ॥ श्रावक धर्मप्रावक जया, आणंदादिक जे दृढ यया || तेहनां एहमां सरसचरित्र, सांगली करियें जन्म पवित्र ॥ २ ॥ श्रावक जिम उपसर्गा खमे, तेडी मु वीर कड़े तमे ॥ गृहीनें खमवुं इम चित्त वस्युं श्रुत पाखें तुम कहे बुं किस् || ३ || जिम जिम रीजे चित श्रुत मुणी, तिम तिम श्रोता होय बहुगुणी || रोमांचित हुये काया सय, जाये नाग सकल अवद्य ॥ ४ ॥ जिनवाली जेहने मन रुची, ते सत्यवादि तेहज शुचि ॥ धर्म्मगोठि तेह कीजियें, वाचक जस कड़े गुणें रीजियें ॥ ५ ॥ इति ॥ ७ ॥
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॥ अथ आठमा अंग अंतगड दशांगसूत्रनी सद्याय लिख्यते ॥
|| साहेलडी यांनी देशी || आठ अंग अंतगडदशा साहेलडीयां, सुग जो घरि विवेक गुएा वेलडीयां ॥ बोल्या बोल ते पालिये सा० ॥ नवित् जियें गुलटेक गु० ॥ १ ॥ एक सुप्रखंध वे एहनो सा० ॥ मोटो बे अडवग्ग गुo॥ चरित्र सुगो बहु वीरनां सा० ॥ रोमांचित हूए अंग गुण ॥ ५ ॥ धरम ते सोवन घटसमो सा० ॥ जांगे पण नवि जाय गुण् ॥ घाट घडामए जो गयुं सा० ॥ वस्तुनुं मूल कदाय गुण || ३ || नित नित राचिये माचिये सा० ॥ याचिये एकज मुक्ति गु० ॥ पुण्यनी प्रकृति निकाचीये साणा धर्मरंग एह युक्ति गुण ॥४॥ श्रीनयविजय विबुधतणो सा० ॥ वाचकयश क