Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 19
________________ संख्या १] अन्तिम वाक्य सभा' के मेम्बर जादूगर की छड़ी के नीचे हों। ये बहुत नये देवताओं के पूजन के पक्षपाती हैं और इनके उपदेशों अच्छे नाटक लिखनेवालों में से थे । इनके नाटक 'दि से नवयुवकों के चरित्र बिगड़ रहे हैं। मुकद्दमा चला और रायवल्स' और 'दि स्कूल फ़ार स्कैंडल्स' बहुत मशहूर हैं। इनको प्राणदण्ड दिया गया। इन्होंने तमाम दिन अपने इनके नाटक जब खेले जाते थे तब ये भी अभिनय करते मित्रों के साथ व्यतीत किया और शाम को आज्ञानुसार थे। थोड़े दिनों के बाद नाटकों से इनकी तबीयत हट गई, जहर पी लिया। मरने के समय इन्होंने कहा थायहाँ तक कि साहित्य से भी। अब ये अपनी पत्नी को "कायटो, (आपका एक मित्र) एक मुर्ग का बलिप्रदान लेकर लंदन चले आये और वहीं रहने लगे। वहाँ आकर एसक्यूलापियस (एक देवता) को करना रह गया है।" ये फैशन के पंजे में फंसे और वह जीवन व्यतीत होने लगा शब्द यद्यपि मामूली हैं, तथापि इस बात के सूचक अवश्य हैं जो अतिव्ययता का परमोच्च शिखर था। १७८० में २९ कि मृत्यु के समय के कष्टों ने प्रतिज्ञा को नहीं भूला पाया था। वर्ष की अवस्था में ये पहली दफ़ा पार्लियामेंट के मेम्बर वाल्टेर, फ्रैंसिस मेरी एरूट डी १६९४-१७७८हुए। परन्तु इनका पहला भाषण असफलता का प्रतिरूप इनका जीवन विचित्र था। पहले कानून पढ़ने का इरादा था। इनके एक मित्र ने इनको सलाह देते हुए कहा था था, परन्तु ये उससे बहुत जल्दी घबरा गये। अतिव्ययी कि बहुत अच्छा होता यदि ये अपना पुराना पेशा करते शुरू से ही थे, इस वजह से बाप नाखुश था। बाप ने रहते। शेरीडन ने अपना सिर अपने हाथ पर रखकर इनको फ्रांस के प्रतिनिधि के साथ जो हालेंड में रहता था, उत्तर दिया कि वाक्-शक्ति मुझमें है और वह प्रकट कर दिया और वहाँ से भी ये अपमानित होकर लौटे। होगी। अब ये अपनी स्पीचे रट कर देने लगे। इन्होंने एक कविता लिखी, जिसमें इतने बड़े आक्षेपों और और जब अपने ऊपर विश्वास बढ़ा तब जो कुछ कहना खुली तरह के व्यंग्यों से काम लिया कि इनको जेलखाना होता था संक्षेप में एक काग़ज़ के टुकड़े पर लिख लेते थे। जाना पड़ा, और इसी अपराध में और भी कई दफ़ा उसकी परिश्रम प्रत्येक कठिनाई पर विजय प्राप्त कर सकता है, हवा खानी पड़ी। लेकिन इनकी आदत नहीं छूटी। इनकी झिझक जाती रही। फिर इनका जो नाम हुआ वह अब विद्वत्ता में कोई सन्देह नहीं था और न कोई सन्देह इनकी भी जीवित है। अब बुरे दिन आये। इनकी पत्नी का चरित्र-हीनता में था। बहुत-से कारबारों में इनका रुपया देहान्त हो गया और जिस औरत से इन्होंने फिर शादी की लग था, जिससे इनको अच्छी आमदनी यी। इनका वह इनसे ज़्यादा रुपया बरबाद करने में बढी हई थी। इनको अन्तिम वाक्य था-- 'कृपा करके मुझे शान्ति से मरने थियेटर से भी कुछ आमदनी नहीं थी। ऋणग्रस्त हो गये दीजिए।" अगर जीवन में शान्ति नहीं थे। इन्होंने मरने के वक्त कहा था--"श्राह ! मैं बिलकुल के समय उसकी आशा करनी व्यर्थ है। बरबाद हो गया !” यह दुखी हृदय के दुख के शब्द हैं। काटरेट जान, अले ग्रेविनाइल १६९०-१७३६-ये है. साक्रेटीज-इनका जन्म सन् ईसवी के ४६९ वर्ष स्वीडेन में इंग्लैंड के प्रतिनिधि रहे थे और अन्तर्राष्ट्रीय पहले बतलाया जाता है। ये ग्रीकदेश के सबसे बड़े तत्त्व. सिक्रेटरी भी। शरीरान्त के समय होमर के महाकाव्य के नकी विशेष रुचि प्राचार-नीति से थी। ये युद्ध का एक दृश्य इनको याद अा गया, जिसमें सरापीडन पहले फ़ौज में काम करते थे और इनका बहादुरी में बड़ा सेनापति ने एक सैनिक से कहा था- "भाग नाम था। राजनीति-क्षेत्र इनका क्षेत्र नहीं था। केवल से कैसे बच सकते हो ? यदि हम सब मौत और वृद्धावस्था कुछ दिनों के लिए ये सचिव-सभा में रहे थे। इन्होंने से बच सकते तो भागना तर्कयुक्त होता। परन्तु मौत हमें कोई किताब नहीं लिखी। ये प्रश्नोत्तरों से उपदेश देते चारों तरफ से घेरे हुए है, इसलिए मैं तुमको उपदेश दूंगा है। इनका कहना था-"सद्गुण ज्ञान है, दुर्गुण अज्ञान कि युद्ध करो और आगे बढ़ो।" है।" ३९९ में इन पर यह अभियोग लगाया गया कि अन्तिम वाक्यों में शान्ति और सन्तोष के अतिरिक्त ईज्य-द्वारा पूजित पुराने देवताओं के ये ख़िलाफ़ हैं और उपदेश भी होते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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