Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 17
________________ संख्या १ ] या कि नेल्सन हर एक आदमी से आशा रखता है कि वह अपने कर्त्तव्य की पालन करेगा। इन्होंने पुनरावृत्ति में 'नेल्सन' की जगह 'इंग्लेंड' शब्द बढ़ा दिया | • इससे इनके उदार विचारों का पता चलता है । १८०० में इन्होंने अपनी पत्नी को तलाक़ दे दिया था, क्योंकि (इनका प्रेम लेडी हैमिल्टन से हो गया था । युद्ध हो रहा था और ये सामने खड़े कैप्टेन हार्डी को आज्ञा दे रहे थे कि इनके बायें कन्धे में गोली या लगी, जिससे प्राणघातक घाव लगा और तीन घंटे के बाद इनका शरीरान्त हो गया। इनका अन्तिम वाक्य यह था - "ईश्वर का धन्यवाद है । मैंने अपने कर्त्तव्य का पालन " किया है ।" मनुष्य को कभी इतना सन्तोष और प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कर्तव्य पालन से होती है । ये नेरो (रोम का बादशाह) ३७-६८ इन्होंने कुल चौदह वर्ष राज्य किया था । सच्चरित्रता का अभाव यों तो बहुतों में होता है, परन्तु ये उन लोगों में थे “जिनके पहलू से हवा भी बचकर चलती थी ।" इनके पिता के मरने पर इनकी माता ने बादशाह क्लाडियस से शादी कर ली और उसने इन्हें अपना उत्तराधिकारी मान लिया। उसके मरने पर तख़्त पर बैठे और बड़ी कड़ाई से शासन किया । इन्होंने क्लाडियस के लड़के का ज़हर दिलवा दिया और अपनी प्रेमिका को प्रसन्न करने के लिए अपनी माता और फिर अपनी पत्नी का वध कर डाला । सन् ६४ ईसवी की जुलाई में रोम में इतनी बड़ी आग लगी कि दो तिहाई शहर जल गया । कहा जाता है कि इन्हीं ने आग लगवा दी थी और यह भी कहा जाता है कि ये दूर से इस भयानक और हृदय विदारक दृश्य को देख रहे थे और एक पुरानी कविता पढ़ रहे थे, जिसमें एक दूसरे शहर के जलने का वर्णन था। बहुत-से ईसाइयों को मरवा डाला और बहुतों के साथ बड़ी कठोरता का बर्ताव किया । इनके ख़िलाफ़ रियाया ने षड्यन्त्र रचा, परन्तु वह सफल नहीं हुआ और प षड्यन्त्रकारी मार डाले गये । इन्होंने फिर शहर नवाना शुरू किया और स्वयं अपना महल बनवाने के ए इटली के कई सूबे लूटे । एक दफ़ा गुस्से में आकर अपनी पत्नी को एक लात मार दी। वह गर्भवती थी और इस चोट से उसकी मृत्यु हो गई। फिर क्लाडियस की लड़की शादी करनी चाही, लेकिन उसने इनकार कर दिया । इस अन्तिम वाक्य फा २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ९ वजह से उसे मरवा डाला । वहाँ से जब नाउम्मीदी हुई तब एक दूसरी स्त्री पर तबीयत श्राई और उसके पति का वध करवाकर उससे विवाह किया। इनके ज़माने में किसी में सद्गुणों का होना एक बड़ा अभिशाप था । ये अपने ज़माने के बहुत बड़े कवि, तत्त्वज्ञानी और संगीतशास्त्रविशारद कहलाना चाहते थे । रियाया बिगड़ी हुई थी । अन्त में विद्रोह सफल हुआ और ये भागे और आत्महत्या कर ली। मरने के वक्त इन्होंने कहा था – “संसार मुझमें कितना बड़ा कला-कौशल खो रहा है ।" शायद यह मिथ्याभिमान की चरमसीमा है । पामर्स्ट (हेनरी जान टेम्पेल) लार्ड १७८४-१८६५ये इंग्लैंड के प्रधानमंत्री के पद तक पहुँचे थे। इनके चरित्र में कुछ विचित्रतायें भी थीं। ये अपनी राय का ऐसे ज़ोरों से समर्थन करते थे कि तर्क की सीमा को भी उल्लंघन कर जाते थे । इनके भाषणों में प्रायः एक प्रकार का रूखापन होता था, जो सभ्य समाज की दृष्टि में अनुचित मालूम होता था । ये अक्सर अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में हस्तक्षेप किया करते थे । इन्होंने मरने के वक्त कहा था - " मरना, डाक्टर, वही एक चीज़ है जो मैं कभी नहीं करूँगा” । संसार की यही एक चीज़ है, जो सबको करना पड़ती है । उर्दू का एक कवि कहता है - "लाश पर इबरत यह कहती है ‘अमीर', आये थे दुनिया में इस दिन के लिए ।" पो ( इडगर एलन) १८०९ - ४९ – ये तीन ही वर्ष की अवस्था में अनाथ हो गये थे । इनको एक अमीर और पुत्रविहीन सौदागर ने अपना उत्तराधिकारी बना लिया था। अभी ये पढ़ ही रहे थे कि इनको जुवाँ खेलने की दत पड़ गई। इन्होंने फ़ौज में नौकरी की । वहाँ ठीक काम न करने की वजह से निकाल दिये गये । ये भूखों मरते, यदि इनको लिखना न श्राता होता । ये अखबारों में लिखा करते थे । उससे कुछ मिल जाता था और कुछ किताबें भी लिखी थीं । लिखकर जो कमाते थे वह फिर उड़ा देते थे और फिर रोटियों के लाले पड़ जाते थे । इनकी पत्नी अत्यन्त दरिद्रता में मरी । इन्होंने एक दफ़ा आत्महत्या करने की चेष्टा की थी । अन्त में इनकी एक अस्पताल में मृत्यु हुई । इनका आख़िरी वाक्य यह था - " हे ईश्वर, मेरी आत्मा की सहायता www.umaragyanbhandar.com

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