Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 15
________________ संख्या १] अन्तिम वाक्य से शादी की और पार्लियामेंट ने इनका क़र्ज़ जो ने बड़ा अच्छा प्रबन्ध किया था । १७६९ में जब फ्रांस की ६,५०,००० पौंड था, अदा कर दिया। बादशाह होने पर फ़ौज ने फ्रैंकफ़ोर्ट में प्रवेश किया तब वहाँ एक थियेटर इन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया। जैसे को तैसा की स्थापना हुई और इनकी तबीयत उधर खिंच गई और मिल जाता है। इनके सम्बन्ध में लोगों की राय है कि प्रसिद्ध नाटक लिखनेवालों से उनकी जान-पहचान ये अभक्त पुत्र, बुरे पति और निठुर पिता थे। मरने के हुई, जिनका बहुत प्रभाव इन पर पड़ा। जब ये यूनिवर्सिटी वक्त कहा था--"यह क्या है ? क्या यह मौत है ?" में भर्ती हुए तब इनको कानून से कुछ भी नहीं गिबन (एडवर्ड) १७३७-१७९४- इंग्लैंड के इति- और साहित्य से बहुत थोड़ी रुचि थी। स्वतंत्र हाम-लेखकों की सूची में इनका नाम सबसे ऊँचा है। आत्माओं को किसी किस्म के बंधन से अरुचि होती है । बचपन में ये प्रायः बीमार रहते थे। सिर्फ दो वर्ष स्कूल में इनको समालोचना लिखने और कविता रचने का शौक पढ़ा था और १४ महीने कालेज में । यही इनकी शिक्षा था। अब प्रेम पथ-प्रदर्शक हुआ- सोने में सुगन्ध की नींव थी। ये लैटिन और फ्रेंच के भी अच्छे विद्वान् आगई । ये अपनी प्रेमिका को इतना चाहते थे कि एक ये। 'डिकलाइन ऐंड फ़ाल श्राफ दि रोमन इम्पायर' इन्हीं दफ़ा जब इनको एक आवश्यक कार्यवश बाहर जाना पड़ा की अमर रचना है। इन्होंने स्वयं लिखा है कि १५ तब ये उसकी कंचुकी साथ ले गये थे। इनका कहना है अक्टूबर १७६४ को जब मैं रोम में बृहस्पति -ग्रह के मंदिर कि कई दिनों तक इनको उसमें एक मनोहारी सुगंध मिलती में बैठा हुआ था और नंगे पैर पुजारी स्तुति कर रहे थे रही । प्रेम प्रत्येक अंग को सुवासित कर देता है। राजवंश तब पहले दफ़ उस साम्राज्य के ह्रास और पतन का में भी इनका श्रादर और सत्कार था और ऊँचे पद पर इतिहास लिखने का ख़याल मेरे दिमाग में आया था। ये नियुक्त थे। इन्होंने बहुत-सी पुस्तकें लिखी हैं, जो अभी ये पार्लियामेंट के मेम्बर भी रहे । ये हमेशा गवर्नमेंट की तक प्रसिद्ध हैं। समय ने पल्टा खाया-अच्छे दिन गये, तरफ़ वोट देते थे और इसी कारण इनको अच्छे वेतन बुरे दिन आये। १८१६ में इनकी पत्नी का शरीरान्त हो की एक जगह मिल गई थी। इनके कौंसिलों में वोट देने गया। इनकी अत्यन्त शोचनीय दशा हो जाती, यदि इनकी के सम्बन्ध में किसी ने खूब कहा है--"अस्त्र धारा भल बह इनकी अच्छी देख-रेख न रखती और पौत्र इनका दिल न जाना कौंसिल का है वोट, या तो पांचों उँगली घी में न बहलाया करते । अँगरेज़ी में एक कहावत है कि 'मुसीबत या सर पर है चोट" । इनका अन्तिम वाक्य यह था- कभी अकेली नहीं आती है।' एक एक करके इनके दोस्त "हे ईश्वर ! हे ईश्वर !” जिनके 'रास्ते में फूल बिछे रहे चलते बने और अन्त में १८३० में इनको पुत्र-शोक भी हैं' या जिन्होंने 'चैन की बंशी' बजाई है या जो 'लक्ष्मी के देखना पड़ा। इनका अन्तिम वाक्य यह था-"प्रकाश, पुत्र' रहे हैं उन्हें ईश्वर से क्या सरोकार ? सरोकार तो और अधिक प्रकाश" । अर्थात् जीवन अन्धकारमय है और ईश्वर से उन्हें रहता है जिनका रास्ता कण्टकपूर्ण है या किसी गूढ़ तत्त्व पर काफ़ी प्रकाश नहीं पड़ता है। जो 'चौंकत चैन को नाम सुने' या जिनके पास भूख को हैपिलट (विलियम) १७७८-१८३०–ये अँगरेज़ी 'धोखा' देने भर का भी इन्तिज़ाम नहीं है या जिनकी के बहुत बड़े लेखक थे। इन्होंने कई विवाह किये, परन्तु ज़िन्दगी 'ज़िन्दा मौत' है । यदि इन सब कष्टों का सामना किसी से इनको वास्तविक सुख नहीं प्राप्त हुअा। इनका गिबन को करना पड़ा था तो फिर कोई वजह नहीं थी कि अन्तिम समय दुःख-पूर्ण रहा । स्वास्थ्य बहुत ख़राब होगया मरने के समय ईश्वर न याद अाता। __ था और उससे अधिक आर्थिक दशा बिगड़ी हुई थी। गेटे (जान उल्फगैंग) १७४९-१८३२-इनका जन्म- इतने पर भी मरते समय इन्होंने कहा था-"मेरा जीवन स्थान फ्रैंकफ़ोर्ट (जर्मनी) है । ये अपने समय के अद्वितीय सुखी व्यतीत हुआ है ।" सन्तोषी सदा सुखी रहता है। विद्वान् थे या यह भी कहना ठीक होगा कि संसार के बड़े हर्बर्ट (जार्ज) १५९३ १६३३–ये कवि थे। कालेज विद्वानों में इनकी गणना है। कोई भी बात ये बहुत से निकलने पर आँखें नौकरी पर थीं, पर इनके कुछ मित्रों . जल्दी सीख लेते थे । इनको शिक्षा देने का इनके पिता ने इनका ध्यान धर्म की तरफ़ आकर्षित कर दिया और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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