Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

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Page 14
________________ सरस्वती [भाग ३८ कहा "इस हाथ ने अपराध किया है। यह अयोग्य सिर काटनेवाले से कहा था- "मेरा सिर लोगों को हाथ। इसी हाथ से इन्होंने अपना धर्म बदलनेवाले अवश्य दिखला देना, क्योंकि ऐसा सिर लोगों को बहत कागज़ पर हस्ताक्षर किया था। चरित्र तो उतना उच्च नहीं दिनों के बाद देखने को मिलेगा।" अभिमान ने मरते था, पर अपनी भल मान लेने की हिम्मत अवश्य थी और वक्त तक इनका साथ नहीं छोड़ा। उसी का सूचक उनका उपर्युक्त अन्तिम वाक्य है। फाक्स, चार्ल्स जेम्स १७४९-१८०६-ये श्राजीवन डैन्टन (जार्जेज जेक्यूज़ १७५९-१७९४ --पाजविप्लव अनियमित ही रहे । १९ वें वर्ष में पार्लियामेंट के के पहले ये पेरिस में वकालत करते थे । इनकी सहानुभूति मेम्बर चुने गये। जब अमरीका से युद्ध हो रहा था तब क्रांतिकारियों की तरफ़ थी। योग्य योग्य को पहचानता है। इन्होंने उन सब कानूनों का विरोध किया जिनके द्वारा इन पर मिराबो की निगाह पड़ी और उन्होंने इनको अपने गवर्नमेंट को मनमानी करने का अधिकार प्राप्त होता साथ काम करने के लिए रख लिया। मिराबो भी अपने था। ये अपने समय के श्रेष्ठ वक्ताओं में थे। इनका जमाने का बहुत बड़ा आदमी था। फ्रांस के विप्लव का स्वभाव सरल और विचार बहुत उदार थे। उनके साथ इतिहास उसी का इतिहास है। एक के बिना दूसरा अपूर्ण भी बहुत अच्छा व्यवहार करते थे जो इनके खिलाफ है। सुनने में चाहे अयुक्ताभास मालूम हो, पर यह एक ऐति- रहते थे। एक दफ़ा जब ये पार्लियामेंट की मेम्बरी के हासिक सत्य है कि प्रायः विद्वत्ता और सच्चारत्रता एक दूसर लिए खड़े हए तब बहत जोरों से इनका विरोध किया का साथी नहीं है। इनका कोई सिद्धान्त नहीं था और गया। ऐसे मौकों पर प्रत्येक वोट बहुमूल्य होता है। अगर कोई था तो समय की सेवा करना । इनके विचारों में डिवनशायर की डचेज़ इनके पक्ष में थीं। डचेज़ बडी स्थिरता नहीं थी-दृढ़ता तो दूर रही। ये एक दफ़ा अपने सुन्दर थीं। वे एक क़स्साब से वोट माँगने गई। उसने वोट पिता के पक्ष में इतना हो गये कि मा ने इन पर गोली देने से इनकार किया। अन्त में यह तय हुअा कि वह चला दी और जब माता के पक्ष में हुए तब बाप को उनका चुम्बन करले और अपना वोट दे दे। काक्स में ये बुरा भला कहने में कोई कसर नहीं उठा रक्खी और फिर सब गुण होते हुए भी कुछ अवगुण थे। वे बहुत बड़े जब पलटा खाया और पिता के पक्ष में गये तब माता के शराबी और जुवाँरी थे। बर्क के समकालीन थे। बर्क ने चरित्र तक पर आक्षेप किया। इनमें सभी अवगुण थे, परन्तु एक दफ़ा इनकी प्रशंसा में कहा था कि फाक्स जैसा उस समय ये जनता के प्राराध्यदेव थे। कज़ लेकर उसे तार्किक संसार में कभी नहीं पैदा हुअा। बक और फाक्स चुकाना इन्होंने नहीं सीखा था। इनके मरने पर इनकी का आखिरी ज़िन्दगी में वैमनस्य हो गया था। तब भी शादी के कपड़ों के दाम देना बाकी था। इनके भाषण बक के मरने पर फाक्स ने पार्लियामेंट में यह प्रस्ताव पेश सदा उनके खिलाफ़ होते थे जो विप्लव के पक्ष में नहीं थे। किया था कि वे वेस्टमिंस्टर-एबे में गाड़े जायँ । परन्तु थोड़े दिनों के बाद ये न्याय मंत्री नियुक्त हुए। इस समय बर्क कह गये थे कि साधारण श्रादमियों की ही तरह वे समस्त देश में बड़ा जोश था। बड़ी जगह पर पहुँचते ही दफ़न किये जायँ । फाक्स ने अपनी मित्रता का ऋण चुका उनकी संख्या बडी हो जाती है जो बिन काज दाहने बायें दिया। इन्होंने मरने के पहले कहा था--"मैं सुखी मर रहते हैं । ये अपने घर चले गये और वहीं रहने लगे। रहा हूँ।" ये शब्द उसी के मुँह से निकल सकते हैं जिस लोगों ने इनको बुला भेजा और पेरिस पहुँचते ही ये पर कोई लाञ्छन न हो। गिरफ्तार कर लिये गये और उसी न्यायालय के सामने ६२-१८३०- १९ वर्ष की अवस्था इनका मुकद्दमा हुअा जिसकी स्थापना इन्होंने की थी। तक ये कड़ी देख-भाल में रक्खे गये। १८ वें वर्ष से ही इन पर न्याय का अपमान करने का अभियोग लगाया अपने चरित्र का पता देना शुरू कर दिया था । एक नाटक गया। इन्होंने अपने बचाव में बहस की, पर एक न सुनी करनेवाली मिसेज़ राविंसन से इनका प्रेम हो गया और गई और इन्हें प्राणदण्ड दिया गया। राज-विद्रोह का फिर २० साल की उम्र में एक रोमन कैथलिक सम्प्रदाय एक बड़ा पक्षपाती स्क्यं उसका शिकार बन गया। उन्होंने की स्त्री से शादी कर ली। १७९५ में फिर प्रिसेस केरोलीन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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