Book Title: Saraswati 1937 01 to 06
Author(s): Devidutta Shukla, Shreenath Sinh
Publisher: Indian Press Limited

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ सरस्वती [भाग ३८ + + अँगरेज़ी भाषा इनकी ऋणी है। इन्होंने मरने के समय इस स्पीच से भी अधिक महत्त्व की स्पीच उन्होंने आर्कट कहा था-"देखो, एक क्रिश्चियन किस तरह मरता है।” के नवाब के कर्ज के विषय में दी थी। बर्क का अन्तिम यह वाक्य उसी के मुंह से निकल सकता है जिसने धार्मिक वाक्य यह था-"ईश्वर तुम्हारा (सबका) भला करे।" जीवन व्यतीत किया हो। ट्राई अान एडवर्डस ने लिखा इससे उनके धार्मिक विचारों का पता चलता है। है कि "मृत्यु ज़रा भी भयानक नहीं है, यदि अपने ही बायरन (जार्ज गार्डन) लार्ड १७८८-१८२४ ---- जीवन ने उसे भयानक न बना दिया हो।" साहित्यिक क्षेत्र में अपने समय में वे बे जोड़ थे । जर्मनी के बर्क (एडमंड) १७२९-१७९७-इनकी गिनती संसार महान् विद्वान् गेटे की राय है कि शेक्सपियर के बाद बैरन के बड़े वक्ताओं में है। ये राजनैतिक विचारों की का ही स्थान है । वे बड़े अभिमानी स्वभाव के थे, साथ ही गम्भीरता, उदारता, स्वतंत्रता और दृढ़ता के लिए भी दुश्चरित्र भी। उनके मरते ही उनका जीवन-चरित लिख प्रसिद्ध हैं। अपनी राय के लिए सब कुछ सहने को तैयार लेने के बाद उनके सारे काग़ज़-पत्र जला दिये गये थे । रहते थे। यह इन्हीं का कहना है कि 'किसी मनुष्य की उन्होंने जो शादी की थी उससे एक लड़की पैदा हुई थी, त्रुटियों के कारण उससे झगड़ा करना ईश्वर की कारीगरी जिसका नाम एडा था। एडा के जन्म के बाद फिर उनकी पर आक्षेप करना है।' इन्होंने अपनी एक स्पीच में कहा पत्नी ने उनके घर का मुंह नहीं देखा। उन्होंने एक बार था कि मेरा यह कहना है कि "उन सब झगड़ों में जो अपनी सौतेली बहन को लिखा था--"जब मैं किसी शासक और शासित के बीच में उठ खड़े होते हैं अमीर औरत को ढूँढ़ पाऊँगा जो मेरी सुविधा के उनसे यही अनुमान किया जा सकता है कि शासित का अनुसार होगी और जो इतनी बेवकूफ़ होगी कि मुझे पक्ष ठीक होगा।" एक दफ़ा इन्होंने अपने वोट देने- स्वीकार करे तब उसे मैं अपने को दुखी करने दूंगा। वालों के सामने भाषण करते हुए कहा था कि “प्रतिनिधि दौलत चुम्बक-पत्थर की तरह है और वैसे ही औरत भी को हर तरह की सेवा करने के लिए तैयार रहना चाहिए, है। वह जितनी ही बुड्ढी हो, उतना ही अच्छा है, परन्तु उसे अपनी आत्मा, अपने ज्ञान और अपनी राय क्योंकि उसे स्वर्ग भेजने का मौका मिलता है ।" जिसके ये का किसी के लिए भी बलिदान नहीं करना चाहिए।” इन विचार हों वह कैसे एक का होकर रह सकता था? अपअमूल्य वाक्यों से आज-कल के 'जी हुजूर'-सम्प्रदाय के भी व्ययी होने के कारण बैरन धनाभाव से पीड़ित रहते थे लोगों का काम चल जाता है। सायमन-कमीशन के प्राग- और उनकी सदैव रुपये पर ही निगाह रहती थी। अन्त मन के पहले से ही इस देश में 'बायकाट' की धूम मची हुई में बाप-दादे की सारी जायदाद, यहाँ तक कि मकान भी थी और जो लोग किसी वजह से उसके पक्ष में थे वे स्वयं बिक गया था। उन्होंने एक दफ़ा अपने मित्र को लिखा लज्जित थे। परन्तु इस लज्जा को छिपाने के लिए उप- था कि उनकी उपाधि कम-से-कम दस या पन्द्रह पौंड में यक्त वाक्यों का पाठ किया करते थे । बर्क की प्रकृति में ज़रूर बिक जायगी-यही अच्छा है जब पास इतने आने अतिथि-सत्कार बहुत था । जब रघुनाथराव पेशवा के दो भी नहीं हैं। 'भारत काह न करहि कुकर्मा'। नित्य प्रति ब्राह्मण राजकर्मचारी इंग्लेंड गये तब उनको वहाँ बड़े काई नई बात हो, यही उनकी इच्छा रहती थी और इसी कष्ट उठाने पड़े। जब यह बात बर्क को मालूम हुई तब को वे अपने जीवन का उद्देश समझते थे और कहते थे उन्हें अपने मकान में ठहराया और बाग़ में उनके खाना कि इसी से पता चलता है कि हम जीवित हैं, चाहे तकपकाने का प्रबन्ध करवा दिया। बर्क सदा ऋण के बोझ लीफ़ में ही क्यों न हों। (नग्न हाये ग़म को भी ऐ दिल से दबे रहे और इसी वजह से किसी बड़ी जगह पर नहीं ग़नीमत जानिये—बे सदा हो जायगा यह साज़ हस्ती एक पहुँच पाये । उन्होंने वारेन हेस्टिंग्ज़ पर अभियोग लगाने में दिन) उसी इच्छा की पूर्ति के लिए वे तम्बाकू खाते थे। जो स्पीच दी थी उसका अाज भी बड़ा नाम है। उसे वे इतने बदनाम हो गये थे कि इंग्लैंड में रहना मुश्किल .सुनकर बहुत-सी सुननेवाली महिलायें बेहोश हो गई थी, हो गया था। जब देश छोड़े जा रहे थे तब उन्होंने एक और स्वयं वारेन हेस्टिग्ज़ का भी दिल दहल गया था। कविता लिखकर अपने मित्र टाम मूर को भेजी थी, जिस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 640