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की उत्पत्ति लिखी है बिलकुल झूठी और स्वकपोलकल्पित है । और हमने जो उत्पत्ति लिखी वह पूर्वोक्त ग्रन्थानुसार लिखी हैं इस में जो किसी ढूंढक या लुंपक को असत् मालूम हो तो उस को हमारे पास से पूर्वोक्त ग्रंथ देख लेना चाहिये ११में पृष्ट में जेठमल्ल ने ५२ प्रश्न लिखे हैं उनके उत्तर :
पहिले और दूसरे प्रश्न में लिखा है कि चेला मोल लेते हो (१), छोटे लडकों को बिना आचार व्यवहार सिखाए दीक्षा देते हो (२), जवाब-हमारे जैन शास्त्रों में यह दोनों काम करने की मनाई लिखी है और हम करते भी नहीं हैं । पूज्य (डेरेदारयति) करते हैं तो वे अपने आप में साधुता का अभिमान भी नहीं रखते हैं। परंतु ढूंढक के गुरु लुंकागच्छ में तो प्रायः हर एक पाट मोल के चेले से ही चला आया है। और ढूंढक भी यह दोनों काम करते हैं। उनके दृष्टांत - जेठमल्ल के टोले के रामचन्द्र ने तीन लडके इस रीति से लिये । (१) मनोहरदास के टोले के चतुर्भुज ने भर्तानामा लड़का लिया या है (२) धनीराम ने गोरधन नामक लडका लिया है (३) मंगलसेन ने दो लड़के लिये हैं (४) अमरसिंह के चेले ने अमीचंद नामक लड़का लिया है (५). रूपाढूंढकणी ने पांच वर्ष की दुर्गी नामक लडकी ली है (६) राजां ढूंढणी ने तीन वर्ष की जीया नामक लडकी (७) यशोदा ढूंढणी ने मोहनी और सुंदरी लडकी सात वर्ष की (८) हीरां ढूंढणी ने छः वर्ष की पार्वती नामक लडकी (९) अमरसिंह के साधु ने रामचंद नामक लड़का फिरोजपुर में लिया जिस के बदले में उस के बाप को २५०) रुपये दिये (१०) बालकराम ने आठ वर्ष का लालचंद नामक लड़का (११) बलदेव ने पांच वर्ष का लड़का (१२) रूपचंद ने आठ वर्ष का पालीनामा डकौंत का लडका १३. भावनगर में भीमजी रिख के शिष्य चूनीलाल उस के शिष्य उमेदचंद ने एक दरजी का लडका लिया था । जिस की माता ने श्रीजिनमंदिर में आ के अपना दुःख जाहिर किया था । आखीर में अदालत की मारफत वह लडका उस की माता को सुपूर्द किया गया था १४. इत्यादि सैंकडो ढूंढियों ने ऐसे काम किये हैं और सैंकडों करते हैं । इस वास्ते संवेगी जैन मुनियों को कलंक देने वास्ते जेठमल्ल ने जो असत्य लेख लिखा है, सो अपने हाथ से अपना मुख स्याही से उज्ज्वल किया है !
तीसरे प्रश्न का उत्तर - पंचवस्तुक नामा शास्त्र में लिखा हैं कि दीक्षा वक्त मूल
इस ढूंढक मत की पट्टावली का विस्तारपूर्वक वर्णन ग्रंथकर्ताने श्रीजैनतत्त्वादर्श में किया है इस वास्ते यहां संक्षेप से मतलब जितना ही लिखा है। संवत् १९५१ चैत्रवदि ११ बहस्पतिवार के रोज जब सोहनलाल को युवराज पदवी दी तब संवत् १९५२ चैत्रसूदि १ के रोज लुधियाना नगर में ढूंढियों ने ६२ बोल बनाये हैं उनमें ३५ में बोल में लिखा है कि : आज्ञा बिना चेला चेली करना नहीं वारसों को खबर कर देनी बिना खबर मूंडना नहीं तथा दाम दिवा के तथा बेपरतीते को करना नहीं दीक्षा महोत्सव में सलाह देनी नहीं दीक्षा वाले को ऊठ, बैठ, खाना दाना, देना, दिवाना शास्त्री हरफ सिखाने नहीं ।
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