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जेठमल लिखता है कि "आनंदादिक श्रावकों ने व्रत आराधे, पडिमा अंगीकार की, संथारा किया, यह सर्व सूत्रों में कथन है, परंतु कितना धन खरचा और किस क्षेत्र में खरचा सो नहीं कहा है ।"
उत्तर अरे भाई ! सूत्र में जितनी बात की प्रसंगोपात्त जरूरत थी, उतनी कही है, और दूसरी नहीं कही है, और जो तुम बिना कही कुल बातों का अनादर करते हो तो आनंदादिक दश ही श्रावकों ने किस मुनि को दान दिया, वह किस मुनि को लेने के वास्ते सामने गये, किस मुनि को छोडने वास्ते गये, किस रीति से उन्हों ने प्रतिक्रमण | किया इत्यादि बहुत बातें जो कि श्रावकों के वास्ते संभवित हैं कही नहीं हैं, तो क्या वह उन्हों ने नहीं की हैं ? नहीं, जरूर की हैं, वैसे ही धन खरचने संबंधी बात भी उसमें नहीं कही है, परंतु खरचा तो जरूर ही है, और हम पूछते हैं कि आनंदादि | श्रावकों ने कितने उपाश्रय कराये सो बात सूत्रों में कही नहीं है, तथापि तुम ढूंढक लोग उपाश्रय कराते हो सो किस शास्त्रानुसार कराते हो सो दिखाओ !
और जेठमल लिखता है कि "आनंदादिक श्रावकों ने संघ निकाला, तीर्थयात्रा करी, मंदिर बनवाये, प्रतिमा प्रतिष्ठी वगैरह बातें सूत्र में होवे तो दिखाओ" उत्तर - आनंदादिक श्रावकों के जिनमंदिरों का अधिकार श्रीसमवायांगसूत्र में है, आवश्यक - सूत्र में तथा योगशास्त्र में श्रेणिक राजा के बनवाये जिनमंदिर का अधिकार है, वग्गुर | श्रावक ने श्री मल्लिनाथजी का मंदिर बंधाया सो अधिकार श्रीआवश्यकसूत्र में है, तथा उसी सूत्र में भरतचक्रवर्ती के अष्टापद पर्वत पर चौबीस जिनबिंबस्थापन कराने का अधिकार है, इत्यादि अनेक जैनशास्त्रों में कथन है, तथापि जैसे नेत्र विना के आदमी को कुछ नहीं दिखता है । वैसे ही ज्ञानचक्षु बिना के जेठमल और उसके ढूंढकों को भी सूत्रपाठ नहीं दिखता है, तथा जेठमल ने कुयुक्तियों कर के सात क्षेत्र उथापे हैं उनका अनुक्रम से उत्तर १ २ क्षेत्र जिनबिंब तथा जिनभवन इसकी बाबत | जेठमल ने लिखा है कि "मंदिर प्रतिमा तो पहिले थे ही नहीं और जो थे ऐसे कहोगे तो किसने कराये वगैरह अधिकार सूत्रमें दिखाओ" इस का उत्तर प्रथम हमने लिख दिया है, और उस से दोनों क्षेत्र सिद्ध होते हैं ।
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३ क्षेत्रशास्त्र - इसकी बाबत जेठमल लिखता है कि "पुस्तक तो महावीरस्वामी के पीछे (९८०) वर्षे लिखे गये हैं। इस से पहिले तो पुस्तक ही नहीं थी, तो पुस्तक के
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तथा श्रीदानकुलक में सात क्षेत्र में बीजा धन यावत् मोक्षफल का देने वाला कहा है:- तथाहि :freraणबिंब पुत्थय संघसरूवेसु सत्त खित्तेसु ।
वविअं धणपि जायइ सिवफलयमहो अनंतगुणं ||२०||
इत्यादि अनेक शास्त्रों में सप्तक्षेत्र विषयिक वर्णन है, परंतु ज्ञानदष्टि विना कैसे दिखे !
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पंजाब देश में थानक, जैनसभा वगैरेह नाम से मकान बनाये जाते है; जिन के निमित्त थानक, या जैनसभा, या धर्म के नाम से चढ़ावा भी लोगों से लिया जाता है ।।
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