Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 204
________________ १८१ सवैया देख भादरोजी भारी लगी कर्म की कटारी करें नरक तैयारी खोटे रंगसंग दीन हैं, समकित बन जारी शुद्ध बुद्ध गई मारी टेर टरदी न टारी ऐसे जग में मलिन हैं। ऐसे उदय खोटे भाग स्वय देव से त्याग अन्य देव करे राग जिन राज से वो छीन हैं, देखो सठ की सठाई काक कारण उडाई हाथे रतन चलाई ऐसे प्रतिमा सो हीन है ।।६।। कुंडली छंद धीर सतगुरु सिमरिये मारग दीयो बताय। ज्ञान करण संशयहरण वंदो ते चित्त लाय। वंदो ते चित्त लाय उत्तराध्ययन अनंदे, नियुक्ति का पाठ चैत अष्टापद वंदे। चरमशरीरी कथन करे त्रिभुवनस्वामीवीर गौतमगिर गढ पर चढे सिमरिये गुरुसतधीर । सवैया अस्सुं पुछ तुं असानुं असी दस्सीये तुसार्नु भम भूलियों तु कानुं ऐसे पूजाप्रभु पाइ है । जेडे सुगुरु हैं प्यारे रस टीका का विचारे निरजुक्ति मूल सारे भासचूरण दिखाई है। देख पंचअंग बानी वीतराग जो वखानी गणधरदेव मानी भव्यजीव मन भाई है। सोध सुगुरुसुजानी गुरु ग्यान की निशानी बुद्धिविजय बतानी प्रभुपूजा चित्त लाई है ।।७।। ___ कुंडली छंद ऐसा पाठ वखानिया महाकल्प की सार । साधु नित कर वंदना मंदिर जिन स्वीकार । मंदिर जिन स्वीकार आलसी जो ना जावें, तो बेले का दंड साधु श्रावक से आवे । लखे न सतरसार जीव तव माने कैसा कुगुरु न दसदे भेद वखाने पाठ ना ऐसा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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