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सवैया
पोष पूजा कर प्यारी चढ़ हाथी की अंबारी त्याग गधे की सवारी राम आतमा मिलाइये, देख विजयजी आनंद चढे जगतमें चंद तेरे काटे पापफंद मिल सम्यक् सुहाइये, मुनि संत के महंत है अनंत गुणकंत पभुआज्ञा सुहंत ऐसे सतगुरु ध्याइये, घटामेघ की वरष मन मोर के हरष स्वान जाने न परष कैसे सतगुरु पाइये ।।१०।।
कुंडली छंद जानो आवश्यक कहे राय उदायन भाष राणी तस परभावती निज धर मंदिर साष, निजघर मंदिर साष आप नित पूजा कर दे पुष्पालंकृत धूप दीप नैवेद सुधर दे, ऐसा मरम सूत्र क्यों कुमत ना मानो राय उदायन पाठ कहे आवश्यक जानो ।
सवैया महा कुमति महंत हिये जरा बी ना संत करे पाप सो अनंत मुखें दया दया आखदे, दया का न जाने मरम छोड बैठे जैनधर्म ऐसे करे दुष्ट करम मरम न चाख दे। मुखों पंडित कहावें पाठ छोड छोड जावें अर्थ वाचना न आवे सो मनुक्त बैन आखदे । जैसे चंद की चंदाई चामचिड़ नैन खाई सो चकोर मन भाई पूजा सुगुरु प्रकास दे।
कुंडली छंद कमला केतक भ्रमर जिम सूतर प्रीति आधार । भंड कुमति जाने नहीं कमलसूत्र की सार । कमलसूत्र की सार चार निखेप वखाने, ये अनुयोग दुवार नय सागर नहीं जाने, भत्त पइन्ना पाठ जैनमंदिर कर अमला, श्रावक जो बनवायें भ्रमर से जैसे कमला ।
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