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सम्यक्त्वशल्योद्धार
सवैया कत्ते कुगुरु कमाई मुखपटी जो बंधाई किसे ग्रंथ न बताई ये कुगुरु की चलाई है। देखो कुमति की फाई भोले जीव ले फसाई रीति धरम गवाई ऐसे नैन के अंधाई है। धागा कान में तनाई रूप दैत का बनाई देख कूकर भुकाई आग्या वीर ना दुहाई है। पूजा हीरानग सार जौरी रख दे सुधार फैंके मूरख गवार सठ पूजा सो न पाई है ।।८।।
कुंडली छंद देखो नैन निहार के अर्थ सुनो श्रुतिदोय । बुद्धि विजय मुनीसजी विजयानंद जगजोय विजयानंद जगजोय पाठ का अर्थ बतावें, ज्ञाताजीमें कहा द्रौपदी पूजा पावें, जिनचैत्यादि पूज स्वर्गमें लीनो लेखो, ये समदिष्टन भई निहार नयन जब देखो।
सवैया देख मगर अभिमानी सार धर्म की न जानी व्है नावा विना प्रानी दधि कौन पार लावेगा । ऐसे प्रभु की निंदाई जब नास तक आई डूबे आप जो संगाई तुझे कोई न घडावेगा। जैसे जग में सलारा जब पृथवी में डारा तब होत भार भारा फेर उडना न पावेगा। दास खुशीमन भाई प्रभु पूजो चित लाई करो खिमत खिमाई ऐसा कारण बचावेगा ।।९।।
कुंडली छंद करो सुगुरु का संग जो जानों सूतर सार । भगत करी सुरियाभ ने पडिमा पूजाधार । पडिमा पूजाधार । राय प्रसैनी भाषी, देवसुरासुर इंदचंद प्रभु पूजा साखी। पावो तब समदिष्टि भगत जिन दाढा धरो, सवी देव से कहा सुगरु की संगत करो।
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