________________
(७) स्त्री के संघट्टे बाबत का प्रत्युत्तर द्रौपदी के अधिकार में लिख आए हैं ।
(८) "सिद्धायतन में जिनप्रतिमा के आगे धूप धुखाया और साक्षात् भगवंत के आगे न धुखाया " ऐसे जेठमल लिखता है परंतु सो झूठ है; क्योंकि प्रभु के सन्मुख भी सूर्याभ की आज्ञा से उस के आभियोगिक देवताओं ने अनेक सुगंधी द्रव्यों से संयुक्त धूप धुखाया है ऐसे श्रीरायपसेणीसूत्र में कहा है ।
२५. जेठमल कहता है कि "सर्व भोग में स्त्री प्रधान है, इस वास्ते स्त्री क्यों प्रभु को नहीं चढाते हो ?" मंदमति जेठमल का यह लिखना महा अविवेक का है, क्योंकि जिनप्रतिमा की भक्ति जैसे उचित होवे वैसे होती है, अनुचित नहीं होती है; परंतु सर्व भोग में स्त्री प्रधान है ऐसा जो ढूंढिये मानते हैं तो उन के बेअकल श्रावक अशन, पान, खादिम, स्वादिम प्रमुख पदार्थों से अपने गुरुओं की भक्ति करते हैं परंतु उन में से कितनेक ढूंढियों ने अपनी कन्या अपने रिख-साधुओं के आगे धरी हैं और विहराई हैं तो दिखाना चाहिये ! जेठमल के लिखे मुताबिक तो ऐसे जरूर होना चाहिये ! ! ! तथा मूर्खशिरोमणि जेठे के पूर्वोक्त लेख से ऐसे भी निश्चय होता है कि उस जेठे के हृदय से स्त्री की लालसा मिटी नहीं थी । इसी वास्ते उस ने सर्व भोग में स्त्री को प्रधान माना है। इस बात का सबूत ढूंढक पट्टावलि में लिखा गया है ।
९९
२६. जेठमल लिखता है कि "चैत्य, देवता के परिग्रह में गिना है तो परिग्रह को पूजे क्या लाभ होवे ?" उत्तर- सूत्रकार ने साधु के शरीर को भी परिग्रह में गिना है तो गणधर महाराज को तथा मुनियों को वंदना नमस्कार करने से | तथा उनकी सेवाभक्ति करने से जेठमल के कहने मुताबिक तो कुछ भी लाभ न होना चाहिये । और सूत्र में तो बडा भारी लाभ बताया है । इस वास्ते उसका लिखना मिथ्या है । क्योंकि जिसको अपेक्षा का ज्ञान न हो उसको | जैनशास्त्र समझना बहुत मुश्किल हैं, और इसी वास्ते चैत्य को देवता के | परिग्रह में गिना है । उसकी अपेक्षा जेठमल के समझने में नहीं आई है । | इस तरह अपेक्षा समझे विना सूत्रपाठ के विपरीत अर्थ कर के भोले लोगों को फंसाते हैं । इसी वास्ते उन को शास्त्रकार निन्हव कहते हैं ।
२७. नमुत्थुणं की बाबत जेठमलने जो कुयुक्ति लिखी हैं और तीन भेद दिखाये हैं सो बिलकुल खोटे हैं, क्योंकि इस प्रकार को तीन भेद किसी जगह नहीं कहे हैं, तथा किसी भी मिथ्यादृष्टि ने किसी भी अन्य देव के आगे नमुत्थुणं पढा ऐसे भी सूत्र में नहीं कहा है, क्योंकि नमुत्थुणं में कहे गुण सिवाय तीर्थंकर महाराज के अन्य किसी में नहीं हैं, इस वास्ते नमुत्थुणं कहना सो सम्यग्दृष्टि की ही करणी है ऐसे मालूम होता है ।
२८. जेठमल कहता है कि "किसी देवता ने साक्षात् केवली भगवंत को नमुत्थुणं नहीं कहा है" सो असत्य है, सूर्याभ देवताने वीर प्रभु को नमुत्थुणं कहा है | ऐसे श्रीरायपसेणीसूत्र में प्रकट पाठ है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org