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मतांतर है। ८२. सूत्र में पार्श्वनाथ के (२८) गणधर कहे और नियुक्ति में (१०) कहे ऐसे जेठमल
ने लिखा है। परंतु किसी भी सूत्र या नियुक्ति आदि में श्रीपार्श्वनाथ के (२८)
गणधर नहीं कहे हैं । इस वास्ते जेठमल ने कोरी गप्प ठोकी है। ८३. "गृहस्थपने में रहे तीर्थंकर को साधु वंदना करे सो सूत्र विरुद्ध हैं" । उत्तर -
जब तक तीर्थंकर गृहस्थपने में हो तब तक साधु का उन के साथ मिलाप होता ही नहीं है ऐसी अनादि स्थिति है । परंतु साधु द्रव्य तीर्थंकर को वंदना करे यह तो सत्य है। जैसे श्रीऋषभदेव के साधु चउविसत्था (लोगस्स) कहते हुए श्रीमहावीर पर्यंत को द्रव्यनिक्षेपे वंदना करते थे । तथा हाल में भी
लोगस्स कहते हुए उसी तरह द्रव्य जिनको वंदना होती है । ८४-८५. "श्रीसंथारापयन्ना में तथा चंद्रविजयपयन्ना में अवंती सुकुमाल का नाम है और एवंती सुकुमाल तो पांचवें आरे में हुआ है । इस वास्ते वह पयन्ने चौथे आरे के नहीं उतर - श्रीठाणांगसूत्र तथा नंदिसूत्र में भी पांचवे आरे के जीवोंका कथन है तो यह सूत्र भी चौथे आरे के बने नहीं मानने चाहिये।
ऊपर मुताबिक जेठमल ढूंढक के लिखे(८५) प्रश्नों के उत्तर हमने शास्त्रानुसार यथास्थित लिखे हैं । और इस से सर्व सूत्र, पंचांगी ग्रंथ, प्रकरण आदि मान्य करने योग्य हैं ऐसे सिद्ध होता है । क्योंकि समदृष्टि से देखने से इन में परस्पर कुछ भी विरोध मालूम नहीं होता है । परंतु यदि जेठमल आदि ढूंढिये शास्त्रों में परस्पर अपेक्षापूर्वक विरोध होने से मानने लायक नहीं गिनते हैं तो उनके माने बत्तीस सूत्र जो कि गणधर महाराजा ने आप गूंथे हैं ऐसे वे कहते हैं, उन में भी परस्पर कुछ विरोध है । जिस में से कुछ प्रश्नों के तौर पर लिखते हैं। १. श्रीसमवायांगसूत्र में श्रीमल्लिनाथजी के (५९००) अवधि ज्ञानी कहे हैं, और
श्रीज्ञातासूत्र में (२०००) कहे हैं यह किस तरह ? २. श्रीज्ञातासूत्र के पांचवें अध्ययन में कृष्ण की (३२०००) स्त्रियां कही हैं, और
अंतगडदशांग के प्रथमाध्ययन में (१६०००) कही हैं यह कैसे ? ३. श्रीरायपसेणीसूत्र में श्रीकेशीकुमार को चार ज्ञान कहे हैं, और
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र में अवधिज्ञानी कहा सो कैसे ? ४. श्रीभगवतीसूत्र में श्रावक हो सो त्रिविध त्रिविध कर्मादान का पञ्चक्खाण करे ऐसे
कहा, और श्रीउपासकदशांगसूत्र में आनंद श्रावक ने हल चलाने खुले रखे यह क्या ? ५. तथा कुम्हार श्रावक ने आवे चढाने खुले रखे। ६. श्रीपन्नवणासूत्र में वेदनीकर्म की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त की कही, और
पगामसझाय (साधुप्रतिक्रमण) में भी द्रव्यजिन को वंदना होती है। "नमो चउवीसाए तिथ्थयराणं उसभाइ महावीर पजवसाणाणं" इतिवचनात् ॥
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