Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 197
________________ १७४ सम्यक्त्वशल्योद्धार सम्यक् प्रकार से निष्पक्षपात दृष्टि से विचार करेंगे तो उन को भ्रांति से रहित जैनमार्ग जो संवेग पक्ष में निर्मलता प्रवर्त मान है सो सत्य और ढूंढक वगैरह जिनाज्ञा से विपरीतमत असत्य है ऐसा निश्चय हो जावेगा; और ग्रन्थ बनाने का हमारा प्रयत्न भी तब ही साफल्यता को प्राप्त होगा। शुद्धमार्ग गवेषक और सम्यक्त्वाभिलाषी प्राणियों का मुख्य लक्षण यही है कि शुद्ध देव, गुरु और धर्म को पहचान के उन को अंगीकार करना और अशुद्ध देव, गुरु, धर्म का त्याग करना । परंतु चित्त में दंभ रख के अपना कक्का खरा मान बैठ के सत्यासत्य का विचार नहीं करना, अथवा विचार करने से सत्य की पहचान होने से अपना ग्रहण किया मार्ग असत्य मालूम होने से भी उस को नहीं छोड़ना, और सत्यमार्ग को ग्रहण नहीं करना, यह लक्षण सम्यक्त्व प्राप्ति की उत्कंठा वाले जीवों का नहीं है । और जो ऐसे हो, तो हमारा यह प्रयल भी निष्फल गिना जावेगा । इस वास्ते प्रत्येक भव्य प्राणी को हठ छोड़ के सत्यमार्ग के धारण करने में उद्यत होना चाहिये। ___यह ग्रन्थ हमने फक्त शुद्ध बुद्धि से सम्यक्दृष्टि जीवों के सत्यासत्य के निर्णय वास्ते रचा है। हम को कोई पक्षपात नहीं है, और किसी पर द्वेषबुद्धि भी नहीं है। इस वास्ते समस्त भव्यजीवों ने यह ग्रंथ निष्पक्षता से लक्ष में लेकर इस का सदुपयोग करना, जिस से वांचने वाले की और रचना करने वाले की धारणा साफल्य को प्राप्त हो। इति न्यायांभोनिधि-तपगच्छाचार्य श्रीमद्विजयानंदसूरि (आत्मारामजी) विरचितः सम्यक्त्वशल्योद्धार-ग्रंथः समाप्तः ।। ढूंढक मत के शल्य को, दूर करे निरधार । सत्य नाम इस ग्रंथ का, समकीतशल्योद्धार ।। ॐ ॥ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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