Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 201
________________ १७८ सम्यक्त्वशल्योद्धार | अथ सुमतिप्रकाश ] बारह मास । (कुंडली छंद) आदि ऋषभ जिन देव थी महावीर अरिहंत । जिनशासन चौवीस जिन पूजो वार अनंत । पूजो वार अनंत संत भव भव सुखकारी। संकट बंधन टूट गए निर्मल समधारी । जिन पडिमा जिन सारषी श्रावकव्रतनुं साध, महावीर चौवीसमें ऋषभदेवजीआद । सवैया तेतीसा चैत चितनुं सुधार प्रभु पूजा का विचार समकित का आचार वीतराग जो वखानी है। लखसूतर की सार ठाम ठामअधिकार वस्तु सतरां प्रकार अष्टद्रव्य से सुजानी है। देखा सूतर उवाई पाठ अंबड बताई पूजा ऐसी करो भाई ये तो मोक्ष की निशानी है। जेडे कुमति हैं धीठ प्रभु मुखडा ना दीठ फिरें त्रसते अतीत मारे कुगुरु अज्ञानी है ।।१।। कुंडली छंद कारण विन कारज नहीं कारण कारज दोई, कारण तज कारज करे मूल गवावे सोई, मूल गवावे सोई नहीं आवश्यक जाने, खूला फूलों पूज प्रभु ये पाठ बखाने, जो कुमतिनर धीठ मुखों नहीं पाठ उच्चारण, सो रुलदे संसार करे कारज बिन कारण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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