________________
१३४
सम्यक्त्वशल्योद्धार
है, उस मुताबिक श्रीबृहत्कल्पसूत्र के भाष्य में समवसरण का अधिकार विस्तार से है। उस में लिखा है कि समवसरण में पूर्व सन्मुख भाव अरिहंत बिराजते हैं
और तीन दिशा में उन के प्रतिबिंब अर्थात् स्थापना अरिहंत बिराजते हैं। ४. श्रीठाणांगसूत्र में स्थापना सत्य कही है। ५. श्रीभगवतीसूत्र में तुंगीया नगरी के श्रावकों ने जिनप्रतिमा पूजी उसका
अधिकार है। ६. श्रीज्ञातासूत्र में द्रौपदी ने जिनप्रतिमा की सत्रहभेदी पूजा की उस का अधिकार है। ७. श्रीउपासकदशांगसूत्र में आनंदादि दश श्रावकोंने जिनप्रतिमा वांदी पूजी ऐसा
अधिकार है। ८. श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्र में साधु जिनप्रतिमा की वैयावच्च करे ऐसे कहा है। ९. श्रीउववाइसूत्र में बहुत जिनमंदिरों का अधिकार है । १०. इसी सूत्र में अंबड श्रावकने जिनप्रतिमा वांदी पूजी ऐसे कहा है । ११. श्रीरायपसेणीसूत्र में सूर्याभ देवता ने जिनप्रतिमा पूजी कहा है । १२. इसी सूत्र में चित्रसारथी तथा प्रदेशीराजा दोनों श्रावकों ने जिनप्रतिमा पूजी
ऐसे कहा है। १३. श्रीजीवाभिगमसूत्र में विजयदेवता आदि देवताओं के जिनप्रतिमा को पूजने
का अधिकार है। १४. श्रीजंबूद्वीपपन्नत्तीसूत्र में यमक देवतादिकों ने पूजा की है। १५. श्रीदशवैकालिकसूत्र - नियुक्ति - में श्रीशय्यंभवसूरि के जिनप्रतिमा को देख
कर प्रतिबोध होने का अधिकार है। १६. श्रीउत्तराध्ययनसूत्र - नियुक्ति - दशवें अध्ययन में श्रीगौतमस्वामी अष्टापद
तुमने श्रीआत्मारामजी का आशय समझा ही नहीं है, तो भी "तुष्यंतु दुर्जनाः" इस न्याय से यदि तुम को श्रीआचारांगका ही प्रमाण लेना है तो लीजिए, श्रीआचारांगसूत्र में भी श्रीमहावीरस्वामी के जन्मवर्णन में यह पाठ है "णिव्वत्तदसाहसि वोक्तंसि सुचिभूतंसि" जरा हृदयचक्षु को खोल के इस पाठ का भावार्थ शोचोगे तो मालूम हो जावेगा कि सिद्धार्थ राजाने स्थितिपतिका में क्या २ काम करे ? क्योंकि इस ठिकाने तो शास्त्रकारने समुच्चय ही वर्णन किया है कि दशाहि का स्थितिपति का से निवृत्त होय पीछे नामस्थापन किया तो इस से सिद्ध हुआ, कि इस ठिकाने शास्त्रकारने स्थितिपतिका का सूचन किया और स्थितिपतिका का खुलासा वर्णन श्रीदशाश्रुतस्कंध के आठ में अध्ययन में है। इस से शास्त्रकार का यही आशय प्रकट होता है कि जैसे श्रीदशाश्रुतस्कंध में स्थितिपतिका का खुलासा वर्णन श्रीमहावीरस्वामी के जन्मवर्णन में है, वैसे श्रीआचारांगसूत्र में भी श्रीमहावीरस्वामी के जन्मवर्णन में जान लेना तो सिद्ध हुआ कि श्रीदशाश्रुतस्कंधमें जैसे सिद्धार्थ राजा की की पूजा का वर्णन है ऐसे ही आचारांगसूत्र में भी है। इस वास्ते श्रीआत्मारामजी का पूर्वोक्त लेख सत्य है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org