Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 176
________________ १५३ ३७. आशा यह धर्म है इस बाबत : सैतारावें प्रश्नोत्तर के प्रारंभ में ही जेठेने लिखा है कि "आज्ञा यह धर्म, दया यह नहीं एसे कहते हैं" यह मिथ्या है, क्योंकि दया यह धर्म नहीं ऐसा कोई भी जैनधर्मी नहीं कहता है, परंतु जिनाज्ञायुक्त जो दया है उसमें ही धर्म है, ऐसा शास्त्रकार लिखते हैं ।। __जेठा लिखता है कि "दया में ही धर्म है, और भगवंत की आज्ञा भी दया में ही है, हिंसा में नहीं । उत्तर - यदि एकांत दया ही में धर्म है तो कितनेक अभव्यजीव अनंतीवार तीनकरण तीनयोग से दया पाल के इक्कीस में देवलोक तक उत्पन्न हुए परंतु |मिथ्या दृष्टि क्यों रहे ? और जमालि ने शुद्ध रीति दया पाला तो भी निन्हव क्यों और संसार में पर्यटन क्यों किया ? इस वास्ते ढूंढियो ! समझो कि अभव्य तथा निन्हवों ने दया ने दया तो परी पाली परंत भगवंत की आज्ञा नहीं आराधी । इंस से उनकी अनंतसंसार भटकने की गति हुई । इस वास्ते आज्ञा ही में धर्म है ऐसे समझना। १. यदि भगवंत की आज्ञा दया ही में है तो श्रीआचारांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध के ईर्याध्ययन में लिखा है कि साधु ग्रामानुग्राम विहार करता रास्ते में नदी आ जावे तब एक पग जल में और एक पग थल में करता हआ उतरे सो पाठ यह है: "भिक्खु गामाणुगाम दूइजमाणे अंतरा से नई आगच्छेज एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा एवएहं संतरइ"। यहां भगवंत ने हिंसा करने की आज्ञा क्यों दी ? २. श्रीठाणांगसूत्र में पांचवें ठाणे में कहा है । यत - "णिग्गंथे णिग्गंथिं सेयंसि वा पंकसि वा पणगंसि वा उदगंसि वा उक्कस्समाणिं वा उवुजमाणिं वा गिण्हमाणे अवलंबमाणे णातिक्कमति।" ॥ ___ अर्थ - काठा चीकड़, पतला चीकड, पंचवरणी फूलन और पानी इन में साध्वी खूच जावे, अथवा पानी में बही जाती हो, उस को साधु काढ लेवे तो भगवंत की आज्ञा का अतिक्रम नहीं है । __ इस पाठ में भगवंतने हिंसा की आज्ञा क्यों दी ? ३. ढूंढिये भी धर्मानुष्ठान की क्रिया करते हैं, मेघ वर्षते में स्थंडिल जाते हैं, शिष्यों के केशों का लोच करते हैं, आहारविहार निहारादिक कार्य करते हैं, इस सर्व कार्यों में जीव विराधना होती है, और इन सर्व कार्यों में भगवंतने आज्ञा दी है। परंतु जेठा तथा अन्य ढूंढियों को आज्ञा, अनाज्ञा, दया, हिंसा, धर्म, अधर्म की कुछ भी खबर नहीं है; फक्त मुख से दया दया पुकारना जानते हैं । इस वास्ते हम पूछते हैं कि पूर्वोक्त कार्य जिन में हिंसा होने का संभव है ढूंढिये क्यों करते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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