Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 185
________________ १६२ सम्यक्त्वशल्योद्धार गोशाले के साथ जैनमति की सादृश्यता करना चाहता है, परंतु सो नहीं हो सकता है । किंतु ढूंढिये वासी सडा हुआ आचार, विदल वगैरह अभक्ष्य वस्तु खाते हैं । जिस से बेइंद्रिय जीवों का भक्षण करते हैं । इस से इन की तो | गोशालामति के साथ सादृश्यता हो सकती है। ६. छठे बोल में "गोशाले को दाह ज्वर हुआ तब मिट्टी पानी छिटका के साता मानी" ऐसे जेठा लिखता हे । उत्तर-यह दृष्टांत जैनमुनियों को नहीं लगता है, परंतु ढूंढियों से संबंध रखता है । क्योंकि दंढिये लघनीति (पिशाब) से गदा प्रमुख धोते हैं और खुशियां मनाते हैं । ७. सातवें बोल में जेठा लिखता है कि 'गोशाले ने अपना नाम तीर्थंकर ठहराया ।। अर्थात् तेईस हो गये और चौवीसवां मैं ऐसे कहा । इसी तरह जैनधर्मी भी गौतम, सुधर्मा, जंबू वगैरह अनुक्रम से पाट बताते हैं"। उत्तर - जेठे का यह लेख स्वयमेव स्खलना को प्राप्त होता हैं । क्योंकि गोशाला तो खुद वीर परमात्मा का निषेध करके तीर्थंकर बन बैठा था । और हम तो अनुक्रम से परंपराय पाटानुपाट बता के शिष्यत्व धारण करते हैं । इस वास्ते हमारी बात तो प्रत्यक्ष सत्य है; परंतु ढूंढकमति जिनाज्ञा रहित नवीन पंथ के निकालने से गोशाले सदृश सिद्ध होते हैं। ८. आठवें बोल में जेठा लिखता है कि "गोशालेने मरने समय कहा कि मेरा मरणोत्सव करना और मुझे शिबिका में रख कर निकालना । इसी तरह जैनमुनि भी कहते हैं"। उत्तर-जेठे का यह लिखना बिलकुल झूठ है, क्योंकि जैनमुनि ऐसा कभी भी नहीं कहते हैं । परंतु ढूंढिये साधु मर जाते हैं तब इस तरह करने का कह जाते होंगे कि मेरा विमान बना के मुझे निकालना, पांच झंडे रखना इस वास्ते ही जेठे आदि ढूंढियों को इस तरह लिखने का याद आ गया होगा ऐसे मालूम होता है इंद्र ने जिस तरह प्रभु का निर्वाण महोत्सव किया है, जैनमति श्रावक तो उसी तरह अपने गुरु की भक्ति के निमित्त स्वेच्छा से यथाशक्ति निर्वाणमहोत्सव करते हैं। ९. नवमें बोल में स्थापना असत्य ठहराने वास्ते जेठे ने कुयुक्ति लिखी है। परंतु श्रीठाणांगसूत्र वगैरेह में स्थापना सत्य कही है । तो भी सूत्रों के कथन को ढूंढिये उत्थापते हैं। इस लिये वह गोशालेमती समान हैं ऐसे मालूम होता है। १०. दशवें बोल में जेठा लिखता है कि "क्रिया करने से मुक्ति नहीं मिलती है । भवस्थिति पकेगी तब मुक्ति मिलेगी, ऐसे जैनधर्मी कहते हैं"। यह लेख मिथ्या है, क्योंकि जैनमुनि इस तरह नहीं कहते हैं"। जैनमुनियों का कहना १ यह तो प्रकट ही है कि जब रात्रि को पानी नहीं रखते तो कभी बड़ी नीति (पाखाना) हो तो जरूर पिशाब से ही गुदा धो कर अशुचि टालते होंगे । बलिहारी इस शुचि की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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