Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 194
________________ १७१ १. सूत्रों में उष्ण पानी का गरमीमें, श्याले में तथा चौमासे में जुदा जुदा काल कहा है । उस काल के उपरांत उष्ण पानीमें भी सचित्तत्व का संभव है, तो भी ढूंढिये काल के प्रमाण बिना पानी पीते हैं । इस वास्ते कालउल्लंघन किया पानी कच्चा ही समझना। २. रात्रि को चुल्हे पर धरा पानी प्रातः को लेकर पीते हैं, जो पानी रात्रि को चुल्हा खुला न रखने वास्ते धरने में आता है । (प्रायः यह रिवाज गुजरात मारवाड, काठियावाड में है ) जो कि गरम तो क्या परंतु कवोष्ण अर्थात् थोडा सा गरम होना भी असंभव है इस वास्ते वह पानी भी कच्चा ही समझना। ३. कुम्हार के घर से मिट्टी सहित पानी लाकर पीते हैं जिस में मिट्टी भी सचित्त और पानी भी सचित्त होने से अचित्त तो क्या होना है परंतु यदि अधिक समय जैसे का वैसा पडा रहे तो उसमें बेइंद्रिय जीव की उत्पत्ति होने का संभव है। ४. पाथियां थापने का पानी लाकर पीते हैं जो कि अचित्त तो नहीं होता है परंतु उस में बेइंद्रिय जीव की उत्पत्ति हुई दृष्टि गोचर होती है। ५. स्त्रियों के कंचुकी (चोली) वगैरह कपड़ों का धोवण ला कर पीते हैं जिस में प्रायः जूव अथवा मरी हुई जू के कलेवर होने का संभव है । ऐसा पानी पीने से ही कई रिखों को जलोदर होने का समाचार सुनने में आया है। ६. पूर्वोक्त पानी में फक्त एकेंद्रिय का ही भक्षण नहीं है। परंतु बेइंद्रियों का भी भक्षण है । क्योंकि एसे पानीमें प्रायः पूरे निकलते है तथापि ढूंढियों को इस बात का कुछ भी विचार नहीं है । देखो इन का दयाधर्म !!! ७. गतदिन की अथवा रात्रि की रखी अर्थात् वासी, रोटी, दाल, खिचडी वगैरह लाते हैं और खाते हैं । शास्त्रकारों ने उस में बेइंद्रिय जीवों की उत्पत्ति कही है। ८. मर्यादा उपरांत का सडा हुआ आचार ला कर खाते हैं, उस में भी बेइंद्रिय जीवों की उत्पत्ति कही है। ९. विदल अर्थात् कञ्ची छास, कच्चा दूध तथा कच्चे दहीमें कठोल' खाते हैं| १ २ ढूंढिये धोवण का पाणी शास्त्रोक्त मर्यादारहित कञ्चा ही पीते हैं। झूठे बर्तनों का धोवण, हलवाई की कडायोका पानी जिस मे से कई दफा कुत्ते भी पी जाते हैं| जिस में मरी हुई मक्खियां भी होती हैं, सुनारों के कुंडो का पानी जिस में गहने आदि धोये जाते है, अतारों के अरकनि कालने का पानी इत्यादि अनेक प्रकार का गंदा पानी भी लेते है! झूठे बर्तनों के धोवण में अन्नादि की लाग होने से तथा बाटी आदि के पानी में हाथ आदि के मैल आदि अशुचि होने से सन्मूच्छिम पंचेद्रि की भी खूब दया पलती है !!! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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