Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 187
________________ १६४ सम्यक्त्वशल्योद्धार कितनेक कारणों से मुसलमानों सरीखे भी हो सकते हैं, सो वह लिखते हैं। . १. जैसे मुसलमान नीला तहमद पहनते हैं, वैसे कितनेक ढूंढिये भी काली धोती पहनते हैं। २. जैसे मुसलमानों के भक्ष्याभक्ष्य खाने का विवेक नहीं है, वैसे ढूंढिये के भी वासी, संधान (अचार) वगैरह अभक्ष्य वस्तु के भक्षण का विवेक नहीं है। ३. जैसे मुसलमान मूर्ति को नहीं मानते हैं, वैसे ढूंढिये भी जिनप्रतिमा को नहीं मानते हैं। ४. जैसे मुसलमान पैरों तक धोती करते हैं, वैसे ढूंढिये भी पैरों तक धोती (चोलपट्टा) करते हैं। ५. जैसे मुसलमान हाजी को अच्छा मानते हैं, वैसे ढूंढिये भी वंदना करने वाले को 'हाजी' कहते हैं। ६. जैसे मुसलमान लसण, प्याज अर्थात् प्याज, कांदा, गंडे खाते हैं, वैसे ढूंढिये भी खाते हैं। ७. जैसे मुसलमानों का चालचलन हिंदुओं से विपर्यय है, वैसे ढूंढियों का चालचलन भी जैनमुनियों से तथा जैनशास्त्रों से विपरीत है। ८. जैसे मुसलमान सर्व जाति के घर का खा लेते हैं, वैसे ढूंढिये भी कोली, | भरवाड़, छींबे, नाई, कुम्हार वगैरह सर्व वर्ण का खा लेते हैं । इत्यादि बहुत बोलों से ढूंढिये मुसलमानों के समान सिद्ध होते हैं । और ढूंढिये श्रावक तो स्त्री के ऋतु के दिन न पालने से उन से भी निषिद्ध सिद्ध होते हैं । ॥ इति । ४३. मुंह पर मुंहपत्ती बंधी रखनी सो कुलिंग है इस बाबत : ४३ वें प्रश्नोत्तरमें मुंह पर मुहपत्ती बांध रखनी सिद्ध करने वास्ते जेठेने कितनीक युक्तियां लिखी हैं । परंतु उन्हीं युक्तियों से वह झूठा होता है, और मुहपत्ती मुंहको नहीं बांधनी ऐसे सिद्ध होता है। क्योंकि जेठे ने इस बाबत मृगारानी के पुत्र मृगालोढीए को देखने वास्ते श्रीगौतमस्वामी को जाने का दृष्टांत दिया है, तो उस संबंध में श्रीविपाकसूत्र में खुलासा पाठ है कि मृगारानी ने श्रीगौतमस्वामी को कहा कि : "तुज्झेणं भंते मुहपत्तियाए मुहं बंधह" अर्थ-'तुम हे भगवन् ! मुखवस्त्रि का से मुख बांध लेवो' इस पाठ से सिद्ध है कि गौतमस्वामी का मुख मुखवस्त्रिका से बांधा हुआ नहीं था । इस से विपरीत ढूंढिये १ ढूंढनियां अर्थात् ढूंढक साध्वीयां - आरजा भी ऋतु के दिन नहीं पालती है ! प्रतिक्रमण करती है और सूत्रों को भी छूती हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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