Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 180
________________ १५७ (शल्य) पोथीरूप जाल गूंथा है । परंतु उस जाल में न फंसने वास्ते और फंसे हुए के उद्धार वास्ते हमने यह उद्यम किया है सो पढ़ कर यदि ढूंढिकपक्षी, निष्पक्ष न्याय से विचार करेंगे तो उन को भी सत्यमार्ग का परिचय हो जावेगा। ॥ इति ॥ ३९. प्रवचन के प्रत्यनीक को शिक्षा करने बाबत : ____ "जैनधर्मी कहते हैं कि प्रवचन के प्रत्यनीक को हनने में दोष नहीं ऐसा ३९वें प्रश्नोत्तर में मूढ़मति जेठेने लिखा है, परंतु हम इस तरह एकांत नहीं कहते हैं । इस वास्ते जेठे का लिखना मिथ्या है । जैनशास्त्रों में उत्सर्ग मार्ग में तो किसी जीव को हनना नहीं ऐसे कहा है । और अपवाद मार्ग में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देख के महालब्धिवंत विष्णुकुमार की तरह शिक्षा भी करनी पड़ जाती है, क्योंकि जैन शास्त्रों में जिनशासन के उच्छेद करने वाले को शिक्षा देनी लिखी है । श्रीदशाश्रुतस्कंध सूत्र के चौथे उदेश में कहा है कि "अवण्णवाइणं पडिहणित्ता भवइ" जब ढूंढिये प्रवचन के प्रत्यनीक को भी शिक्षा नहीं करनी ऐसा कह कर दयावान् बनना चाहते हैं तो ढूंढिये साधु रेच (जुलाब) लेकर हजारों कृमियों को अपने शरीर के सुख वास्ते मार देते हैं तो उस वक्त दया कहाँ चली जाती है ? __ जेठेने श्रीनिशीथचूर्णिका तीन सिंह के मरने का अधिकार लिखा है । परंतु उस मुनिने सिंह को मारने के भाव से लाठी नहीं मारी थी । उस ने तो सिंह को हटाने वास्ते यष्ठिप्रहार किया था। इस तरह करते हुए यदि सिंह मर गये तो उसमें मुनि क्या करे ? और गुरुमहाराजा ने भी सिंह को जान से मारने का नहीं कहा था । उन्हों ने कहा था कि जो सहज में न हटे तो लाठी से हटा देना । इस तरह चूर्णि में खुलासा कथन है । तथापि जेठे सरीखे ढूंढिये कुयुक्तियां करके तथा झूठे लेख लिख के सत्यधर्म की निंदा करते हैं सो उन की मूर्खता है। __इस की पुष्टि वास्ते जेठेने, गोशाले के दो साधु जलाने का दृष्टांत लिखा है, परंतु सो मिलता नहीं है, क्योंकि उन मुनियों ने तो काल किया था, और पूर्वोक्त दृष्टांत में ऐसे नहीं था। तथा पूर्वोक्त दृष्टांत में साधुने गुरुमहाराजा की आज्ञा से यष्ठिप्रहार किया है । और गोशाले की बाबत प्रभुने आज्ञा नहीं दी है । इस वास्ते गोशाले के शिक्षा करने का दृष्टांत पूर्वोक्त दृष्टांत के साथ नहीं मिलता है । फिर जेठेने गजसुकुमाल का दृष्टांत दिया है। परंतु जब गजसुकुमाल काल कर गया तो पीछे उसने उपसर्ग करने वाले का निवारण ही क्या करना था ? अगर कृष्ण महाराजा को पहले मालूम होता कि सोमिल इस तरह उपसर्ग करेगा तो जरूर उसका निवारण करता, तथा गजसुकुमाल के काल करने पीछे कृष्णजी के हृदय में उस को शिक्षा करने का भाव था । परंतु उपसर्ग करने वाले को तो स्वयमेव शिक्षा हो चूकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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