Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj, Punyapalsuri
Publisher: Parshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad

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Page 168
________________ या केवल चैत्य उत्पन्न हुआ, इत्यादि किसी ठिकाने भी नहीं कहा है । और सम्यग्दृष्टि श्रावक प्रमुख को जातिस्मरणज्ञान तथा अवधिज्ञान उत्पन्न होने का | अधिकार सूत्र में जहां जहां है वहां वहां भी अमुक ज्ञान उत्पन्न हुआ ऐसे तो कहा है। परंतु जातिस्मरण चैत्य पैदा हुआ, अवधि चैत्य पेदा हुआ ऐसे नहीं कहा है । इत्यादि। | अनेक प्रकार से यही सिद्ध होता है कि सूत्रों में किसी ठिकाने भी ज्ञान को चैत्य नहीं कहा है । इस वास्ते जेठे का कथन मिथ्या है । चैत्य शब्द का अर्थ ज्ञान ठहरा वास्ते जो बोल लिखे हैं उन को पुनः विस्तारपूर्वक लिखने से मालूम होता है कि २६ | वें बोल में जंघाचारण मुनि के अधिकार में 'चेइयाइं वंदित्तए ऐसा शब्द है । उस का | अर्थ जेठमल ने वीतराग को वंदना की ऐसा किया है सो खोटा है, वीतराग की प्रतिमा को जंघाचारणने वंदना की यह अर्थ सच्चा है । इस बाबत पंद्रहवें प्रश्नोत्तर में खुलासा लिखा गया है। ५४५ २७ वें बोल में जेठमल ने चमरेंद्र के अलावे में "अरिहंते वा अरिहंत चेइयाणि वा" और "अणगारे वा" ऐसा पाठ है । ऐसे लिखा है इस पाठ से तो प्रत्यक्ष "चेइयं" शब्द का अर्थ 'प्रतिमा' सिद्ध होता है । क्योंकि इस पाठ में साधु भी जुदे कहे हैं, और अरिहंत भी जुदे कहे हैं, तथा 'चेइय' अर्थात् जिनप्रतिमा भी जुदी कही है, इस वास्ते इस अधिकार में अन्य कोई भी अर्थ नहीं हो सक्ता है । तथापि जेठे ने तीनों ही बोलों का अर्थ अकेले अरिहंत ही जानना ऐसा किया है सो उसकी मूर्खता की निशानी है । | कोई सामान्य मनुष्य फक्त शब्दार्थ के जानने वाला भी कह सकता है कि इन तीनों | बोलों का अर्थ अकेले अरिहंत ऐसा करनेवाला कोई मूर्खशिरोमणि ही होगा । जेठमलजी लिखते हैं कि "पूर्वोक्त पाठ में चैत्य शब्द से जिनप्रतिमा हो और उस का शरण लेकर चमरेंद्र सुधर्मा देवलोक तक जा सकता हो तो तीरछे लोकमें द्वीपसमुद्र में शाश्वती प्रतिमा थी । ऊर्ध्वलोक में मेरुपर्वत ऊपर तथा सुधर्मा विमान में सिद्धायतन में नजदीक शाश्वती प्रतिमा थी तो जब शक्रेंद्रने उस के ( चमरेंद्र के ऊपर वज्र छोड़ा तब वह जिनप्रतिमा के शरणे नहीं गया और महावीरस्वामी के शरणे क्यों आया ? "। इस का उत्तर जेठमलने भद्रिक जीवों को फंसाने वास्ते यह प्रश्न जालरूप गूंथा है । | परंतु इस का जवाब तो प्रत्यक्ष है कि जिसका शरण लेकर गया हो उसी की शरण | पीछा आवे । चमरेंद्र श्रीमहावीर स्वामी का शरण लेकर गया था । इस वास्ते पीछा उन के शरण आया है । जेठमल के कथन का आशय ऐसा है कि "उस के आते हुए | रास्ते में बहुत शाश्वती प्रतिमा और सिद्धायतन थे तो भी चमरेंद्र उन के शरण नहीं गया । इस वास्ते चैत्य शब्द का अर्थ जनप्रतिमा नहीं और उस का शरण भी नहीं" । वाह रे मूखशरोमणि ! रास्ते में जिनणातमा थी, उन के शरण चमरेंद्र नहीं गया परंतु रास्ते में | श्रीसीमंधर स्वामी तथा अन्य विहान विचरते थे। उनके शरण भी चमरेंद्र नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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