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सम्यक्त्वशल्योद्धार
२ माणण ३ पूयणाए ४ जाइमरणमोयणाए ५ दुक्खपडिघाय हेउ ६ तं से अहियाए त से अबोहिए एस खलु गंथे १ एस खलु मोहे २ एस खलु मारे ३ एस सलु निरए ४ ।
आय - कर्मबंधन के कारण में निश्चय भगवंतने ज्ञानबुद्धि से हिंसा यह कर्मबंध है, पर दया यह निर्जरा है ऐसी प्रज्ञा कही । जीवितव्य के वास्ते १ प्रशंसा के वास्ते २
के वास्ते ३ पूजाश्लाघा के वास्ते ४ जनममरण से छूटने वास्ते ५ दुःख दूर करने वास्त ६ इन पूर्वोक्त ६ कारणों से जीव हिंसा करते हैं । उस का फल उस पुरुष को अहित के वास्ते और मिथ्यात्व के वास्ते है । तथा पूर्वोक्त ६ कारणों से जो हिंसा करे उस को निश्चय कर्मबंध का कारण है १ यह निश्चय अज्ञानता का कारण है, २, यह निश्चय अनंतमरण बढ़ाने वाला है, ३, यह निश्चय नरक का कारण है, ४ । इस पाठ के लेख से तो जितने ढूंढिये साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका हैं वे सर्व अहित, मिथ्यात्व, कर्मगांठ, मोह और अनंत मरण को प्राप्त होंगे और नरकमें भी जावेंगे ।
यांकि ढूंढक साधु साध्वी विहार में नदी उतरते हैं । उस में छीकाया की हिंसा धर्म + वास्त करते हैं, पडिलेहण में असंख्य वायुकाय के जीव हनते हैं । तथा प्रतिजमणादि अनुष्ठानो में वायुकायादि जीजों की हिंसा धर्म के वास्ते अर्थात् - पूर्वोक्त पांचवं कारण में कहे मुताबिक जन्ममरण से छूटने वास्ते करते हैं । इस लिये नरकादि विटंबना को पावेंगे।
और ढूंढक श्रावक श्रालिका आजीविका के वास्ते छीकाया की हिंसा करते हैं। अपनी प्रशंसा के वारते किनिनः काना में हिंसा करते हैं । अपने मान के वास्ते पुत्रपुत्रा के विवाहादि कायों में छोकाया का हिंसा करते हैं । गुरु के दर्शन वास्ते जाते हुए, सामायिक के वारत जाते हुए, पडिलहण पडिक्कमणा करते हए, थानक बनवाते हा दीक्षामहोत्सव करते हुए, छीकाया की हिंसा करते हैं । तथा कोई ढूंढक साधु साध्वी मर जावं तो विमान बनवाते हैं, दीवे जलाते हैं, अन्न उडाते हैं, बाजे बजवाते हैं, और अंत में लकड़ियों से चिता बना के उस में ढूंढक ढूंढकनी को अग्निदाह करते हैं । जिस में भी लोकाया की हिंसा करते है; इत्यादि धर्म के काम करके जान्ण छूटना चाहत हैं; तथा शारीरिक और मानसिक दानव दर करने वास्ते भी छोकाया की हिंसा करते है । इस बास्त तक शासक श्राविका जेठ कािनिक याता कामना की ज
द्ध का है। जेट बना, सिद्धांत दंटियो के वारला ... यो सरीखे देवगुरु और भारत के निंदत, म्लेच्छा सपने मन
को ही गति होने का संभव है । यह प्रश्नोत्तर | लिख के ना नमार कन हटियों का नड : .. और सर्व एंटक साध, साध्वी, श्रावक और भाविका : ' . :!
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