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मंदमति जेठमल ने इस प्रश्नोत्तर में जो जो बोल लिखे हैं उन में 'अपनी इच्छा' ऐसा शब्द उन कार्यों को जिनाज्ञा विना के सिद्ध करने वास्ते लिखा है; परंतु उनमें से बहुत कृत्य तो पुन्यप्राप्ति के निमित्त ही किये हैं । जिनमें से कुछ कारण सहित नीचे लिखे जाते हैं ।
सम्यक्त्वशल्योद्धार
१. कोणिक राजा ने प्रभु की बधाई में नित्य प्रति साढे बारह हजार रूपैये दिये सो जिनभक्ति के वास्ते ।
२. अनेक राजाओं ने तथा श्रावकों ने दीक्षामहोत्सव किये सो जैनशासन की प्रभावना वास्ते ।
३. श्रीकृष्णमहाराजाने दीक्षा की दलाली वास्ते द्वारिका में पडह फेरया सो धर्म की वृद्धिवास्ते ।
४. इंद्र तथा देवतादि ने जिनजन्ममहोत्सव किया सो धर्मप्राप्ति के वास्ते ऐसा श्रीजंबद्वीपपन्नत्तीसूत्र का कथन है ।
५. देवता नंदीश्वर द्वीप में अठ्ठाईमहोत्सव करते हैं सो धर्मप्राप्ति के वास्ते ।
६.
जंघाचारण तथा विद्याचारण लब्धि फोरते हैं सो जिनप्रतिमा के वांदने वास्ते । ७. शंख श्रावक ने सधर्मीवात्सल्य किया सो सम्यक्त्व की शुद्धि के वास्ते । इस मुताबिक अद्यापिपर्यंत सधर्मीवात्सल्य का रिवाज चलता है, बहुत पुण्यवंत श्रावक सधर्मी की भक्ति अनेक प्रकार से करते हैं । यदि जेठमल इस का अर्थात् सधर्मीवात्सल्य करने का निषेध करता है और लिखता है कि इस | कार्य में उस की इच्छा है, जिनाज्ञा नहीं है तो ढूंढिये अपने सधर्मी को जिमाते हैं, संवत्सरी का पारणा कराते हैं, पूज्य की तिथि में पोसह करके अपने सधर्मी को जिमाते हैं । इन में जेठमल और ढूंढिये साधु पाप मानते होगे, क्योंकि इन कार्यों में हिंसा जरूर होती है । जब ऐसे कार्य में पाप मानते हैं तो ढूंढिये तेरापंथी - भीखम के भाई बन के यह कार्य किस वास्ते | करते हैं ? क्या नरक में जाने वास्ते करते हैं ?
८. तेतली प्रधान को पोट्टील देवता ने समझाया सो धर्म के वास्ते ।
९. तीर्थंकर भगवंत ने वर्षीदान दिया सो पुण्यदान धर्म प्रकट करने वास्ते ।
१०. देवता जिनप्रतिमा तथा जिनदाढा पूजते हैं सो मोक्षफल वास्ते ।
११. उदायन राजा बडे आडंबर से भगवंत को वंदना करने वास्ते गया सो पुण्यप्राप्ति वास्ते ।
इत्यादि अनेक कार्य सम्यग्दृष्टियों ने किये हैं । जिन में महापुण्यप्राप्ति और तीर्थंकर | की आज्ञा भी है । यदि जेठमल एकांत दया से ही धर्म मानता है तो श्रीभगवतीसूत्र के नव में शतक में कहा है कि जमालि ने शुद्ध चारित्र पाला है । एक मक्खी की पांख भी नहीं दुखाई है । परंतु प्रभु का एक ही वचन उत्थापने से उस को अहिंसा के फल
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