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को समर्थ है ?" भगवंत कहते हैं "हां, केवल स्त्री शब्द नाटक आदि में श्रवणादिक | परिचारण करे परंतु मैथुन संज्ञा से सुधर्मा सभा में शब्दादिक भी न सेवे"।
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पूर्वोक्त पाठ में जैसे चमरेंद्र के वास्ते कथन किया वेसे सौधर्मेंद्र तक अर्थात् भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषि, वैमानिक तथा उन के लोकपाल संबंधी कथन के आलावे (पाठ) हैं सो तदर्थी पाठ देख लेना ।
पूर्वोक्त सूत्रपाठ से जेठमल की कितनीक कुयुक्तियों के प्रत्युत्तर आ जाते हैं ।
जेठमल लिखता है कि "भव्य, अभव्य, सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि आदि सर्व | देवता जिनेश्वर भगवंत की प्रतिमा सिद्धायतन में हैं। वे तथा जिन दाढा पूजते हैं । इस | वास्ते उन का मोक्षफल नहीं" इस का प्रत्युत्तर सूर्याभ के प्रश्नोत्तर में लिख दिया है । परंतु ढूंढिये जो करणी सर्व करते हैं, उस का मोक्षफल नहीं समझते हैं । तो संयम, श्रावक व्रत, सामायिक और प्रतिक्रमणादि भव्य, अभव्य, सम्यगदृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि सर्व ही करते है । इस वास्ते मूढमति ढूंढियों को साधुत्व, श्रावक व्रत, सामायिकादि | भी नहीं करनी चाहिये ! परंतु बेअकल ढूंढिये यह नहीं समझते हैं कि जैसा जिस का भाव है वैसा उस को फल है ।
जेठमल लिखता है कि "जीत आचार जानके ही देवता दाढा आदि लेते हैं । धर्म जान के नहीं लेते हैं" उत्तर - श्रीजंबूद्वीप पन्नत्ती सूत्रमें जहां जिनदाढा लेने का अधिकार बताया है वहां कहा है कि "चार इंद्र चार दाढा ले, पीछे कितनेक देवता अंगोपांग के अस्थि प्रमुख लेते हैं । उन में कितनेक जिनभक्ति जानके लेते हैं, और कितनेक धर्म जान के लेते हैं"। इस वास्ते जेठमल का लिखना मिथ्या है, श्रीजंबूद्वीप पन्नत्ती का पाठ यह है
केई जिणभत्तिए केई जीयमेयंतिकट्टु केई धम्मोत्तिकट्टु गिण्हंति ।।
जेठमल लिखता है, कि "दाढा लेने का अधिकार तो चार इंद्रों का है और दाढा की पूजा तो बहुत देवता करते हैं ऐसे कहा है । इस वास्ते शाश्वत पुद्गल दाढा के | आकार परिणमते हैं । उस का उत्तर - एक पल्योपम काल में असंख्यात तीर्थंकरों का निर्वाण होता है । इस वास्ते सर्व सुधर्मा सभाओं में जिन दाढा हो सकती हैं, ओर | महा विदेह के तीर्थंकरों की दाढा सर्व इंद्र और विमान, भुवन, नगराधिपत्यादिक लेते हैं, परंतु भरतखंड की तरह चार ही इंद्र ले यह मर्यादा नहीं है । तथा श्री जंबूद्वीपपन्नत्तिसूत्र की वृत्ति में श्री शांतिचंद्रोपाध्यायजी ने "जिनसक्काहा " शब्द कर के | "जिनास्थीनि" अर्थात् जिनेश्वर के अस्थि कहे हैं तथा उसी सूत्र में चार इंद्रों के सिवाय अन्य बहुत देवता जिनेश्वर के दांत, हाड, प्रमुखअस्थि लेते हैं ऐसा अधिकार है । श्रीरायपसेणी, जीवाभिगम, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति प्रमुख शास्त्रों में भी तीर्थंकरों की दाढा पूजनी लिखी है, और तिस पूजा का फल यावत् मोक्ष लिखा है ।।
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