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सम्यक्त्वशल्योद्धार
इस से मालूम होता है कि वह अपनी बीती बात लिख गया होगा।
१२. "श्रीभगवतीसूत्र में छठे आरे लगते वैताढय पर्वत वर्ज के सर्व पर्वत व्यवच्छेद होंगे ऐसे कहा है । और ग्रंथो में शत्रुजय पर्वत शाश्वता कहा है" इस का उत्तर सातवें प्रश्नोत्तर में लिख आए हैं ।
१३. "श्रीभगवतीसूत्र में कृत्रिम वस्तु की स्थिति संख्याते काल की कही है और ग्रंथों में शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा असंख्यात काल की है, ऐसे कहा है| | इस का उत्तर तीसरे प्रश्नोत्तर में दिया गया है ।
१४. "श्रीज्ञातासूत्र में श्रीशचंजय पर्वत ऊपर पांच पांडवोंने संथारा किया ऐसे कहा और ग्रंथो में बीस क्रोड़ मुनियों के साथ पांडव सिद्ध हुए ऐसे कहा" उत्तर - श्रीज्ञातासूत्र में फक्त पांडवों की ही विवक्षा है, अन्य मुनियों की नहीं इस वास्ते वहां परिवार नहीं कहा है।
१५. "श्रीभगनतीसूत्र में महावीर स्वामी की ७०० केवली की संपदा कही और ग्रंथों में पंदरह सौ तापस केवली बढ़ा दिया इस का उतर दशमें प्रश्नोतर में लिखा दिया है।
१६. "श्रीठाणांगसूत्र में मानुषोत्तर पर्वत ऊपर चार कूट इंद्र के आवास के कहे और जैनधर्मी सिद्धायतन कूट हैं ऐसे कहते हैं, परंतु वह तो सूत्र में कहे नहीं हैं"। उत्तर- ठाणांगसूत्र के चौथे ठाणे में चार बोल की वक्तव्यता है इस वास्ते वहां चार ही कूट कहे हैं, परंतु सिद्धायतनकूट श्रीद्वीपसागरपन्नत्ति में कहा है, इस बाबत पंदर में प्रश्नोत्तर में विशेष खुलासा किया गया है।
१७. "सूत्रमें साधुसाध्वी को मोल का आहार न कल्पे ऐसे कहा और प्रकरणों में सात क्षेत्रे धन निकलवाते हो । उस में साधुसाध्वी के निमित्त भी धन निकलवाते हो" उत्तर - जैनमत के किसी भी शास्त्र में उत्सर्ग कहीं नहीं लिखा है कि साधु के निमित्त मोल का लिया आहारादिक श्रावक देवे और साधु लेवे । इस बाबत जेठमल ने बिलकुल मिथ्या लिखा है । तथा इस बाबत अठारहवें प्रश्नोत्तर में खुलासा लिखा गया है।
१८. "सूत्र में रुचकद्वीप पंद्रहवाँ कहा और प्रकरण में तेरहवाँ कहा" उत्तर-श्रीअनुयोगद्धारसूत्र में रुचकद्वीप ग्यारहवाँ और जीवाभिगमसूत्र में पंदरहवाँ लिखा है। सो केसे ?
१९. "सूत्र में ५६ अंतरद्वीप जल से अंतरिक्ष कहे हैं और प्रकरण में चार दाढा ऊपर हैं ऐसे कहा है"। उत्तर - चार दाढा ऊपर जेठे का यह लिखना झूठ है क्योंकि आठ दाढा ऊपर हैं ऐसे प्रकरण में कहा है, और सो सत्य है, क्योंकि सूत्र में दाढा ऊपर नहीं हैं ऐसे नहीं कहा है।
२०. "श्रीपन्नवणासूत्र में छद्मस्थ आहारक की दो समय की स्थिति कही और
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